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Showing posts from July, 2022

ग़ज़ल

घूस लेकर नौकरी जो बांटने में दक्ष है। वो ही अनुशासन समिति का केंद्र में अध्यक्ष है। फैसला लिक्खा धरा है साफ पहले से अगर तब बताकर क्या करोगे क्या तुम्हारा पक्ष है। बस युधिष्ठिर की तरह उत्तर कोई देता नहीं प्रश्न लेकर के खड़ा हर आदमी ही यक्ष है। इस धरा का भार ढोएंगे नहीं गमलों के पेड़ अब प्रकृति का कोप सबके सामने प्रत्यक्ष है। एक बैठा पेट पर खाली लपेटे संविधान  दूसरे ने  नोट से ही  भर लिया गृह कक्ष है। सीबीआई और ईडी की अघोषित घोषणा राज जिसका भी रहेगा वह हमेशा स्वच्छ है। बेवफाई में फकत दुनिया की हालत चित्रगुप्त सिर्फ इतना जान लो वह आपके समकक्ष है।

बाल कविता

बच्चों पहले आसमान होता था बिल्कुल नीचे। बुढ़िया एक लगाती थी झाड़ू आंखों को मीचे। उस बुढ़िया के कूबड़ से फिर आसमान टकराया इस घटना पर उस बुढ़िया को भारी गुस्सा आया। बुढ़िया ने तब झाड़ू लेकर आसमान को मारा बोली ऐसी गलती करना बिल्कुल नहीं दुबारा। आसमान सब चाँद सितारे लेकर ऊपर भागा सबको ले जाकर बुढ़िया से बहुत दूर में टांगा हँसकर मिलना सबसे चाहे जो भी हो मजबूरी गुस्सा करने से बढ़ जाती है आपस की दूरी। #चित्रगुप्त

भगवान का इंटर व्यू

भगवान का इंटरव्यू *************** भगवान सोकर उठे तो नाक से कुछ इंच दूरी पर डटे तंबूरे को देखकर सकते में आ गये। उन्होंने दोनों हाथों से जोर लगाकर तंबूरे को दूर हटाया कि तभी दनदनाता हुआ एक सवाल उनके कानों में घुस गया। "आपको चिर निद्रा से उठकर कैसा महसूस हो रहा है?" सवाल के पीछे एक सुंदरी झूठी मुस्कान लिए खड़ी थी। "अरे सवाल तो ठीक है लेकिन तुम कौन हो कहाँ से आई हो और बिना मेरे इजाजत अंतःपुर तक आ गई , आज सारे दरबान मर गए क्या?" भगवान जोर से चीखे। भगवान की इस हरकत पर चित्रगुप्त दौड़कर आये और भगवान के कान में फुसफुसाने लगे "देवाधिदेव इनसे बड़ी तमीज़ से बात कीजिये ये भूलोक की पत्रकार हैं। तिल का ताड़ बनाना ही इनका काम है। इन्होंने अगर आपके बारे में कुछ उल्टा पुल्टा प्रसारित कर दिया तो आपकी टीआरपी का बंटाधार हो जाएगा। ये जिसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएं उसका बेड़ा गर्क कर दें और जिसके पीछे मुँह धोकर पड़ जाएं उसकी आने वाली सात पीढ़ियों को दिन ढलते ही भूत दिखाई दे।" "तो क्या ये मेरे भक्तों से भी ज्यादा खतरनाक है? जो हजारों के मुफ्त की कमाई से धेला भर दान देकर खुद को सब पापो

आदमी न रहा

भेड़, भेड़िया, बकरी, सियार कभी स्कूल नहीं गए फिर भी वो  भेड़, भेड़िया, बकरी, सियार ही रहे कोयल, बुलबुल, गौरैया, बत्तख नहीं गईं कभी किसी धर्मस्थल  फिर भी वे  कोयल, बुलबुल, गौरैया, बत्तख ही रहीं कुत्तों बिल्लों ऊंटों शेरों ने नहीं सुने कभी कोई धार्मिक ब्याख्यान  फिर भी वे कुत्ते बिल्ले ऊँट और शेर ही रहे। जंगल, पहाड़, झरने, नदियां टूटकर जलकर सूखकर मरकर जंगल, पहाड़, झरने, नदियां ही रहीं बस एक आदमी ही था जिसने उपर्युक्त सब किया फिर भी वह आदमी न हुआ... #चित्रगुप्त

दवाई के चक्कर में

12 ग़ज़लें

जोर तो सबने लगाया देर तक। हाथ लेकिन कुछ न आया देर तक। एक पल में रूठकर वो चल दिया और फिर मैंने बुलाया देर तक। खोलने वाले ने जहमत की नहीं यूँ तो दरवाजा बजाया देर तक। मैं खड़ा हूँ छू लिया है आपने सोचकर ही मुस्कुराया देर तक शोर से जैसे परिंदे उड़ गये तार सा मैं थरथराया देर तक रूठकर खुद ही तुम्हारी बात से और ख़ुद को ही मनाया देर तक जानता हूँ जो गया आता नहीं हाथ को फिर भी हिलाया देर तक। हो कोई शायद इशारा इस तरफ सोचकर नजरें मिलाया देर तक। (2) उम्मीदों को अपनी जरा सी हवा दें चले आइये फिर ये दीपक बुझा दें। तमन्नायें अठखेलियाँ कर रही हैं इन्हें अपनी बाहों का झूला झुला दें। अगर तू हमें देखकर मुस्करा दे तो खो जायँ तुझमें ही दुनिया भुला दें। निगाहें मिलाकर निगाहों की मदिरा मुझे तू पिला दे तुझे हम पिला दें लिखी हों जहाँ नफरतों की ज़बानें वो मजहब की सारी किताबें जला दें हैं नक्काशियों के कई फूल जिनपर कहो कैसे बूढ़ी  दीवारें गिरा दें कई चाँद सूरज खरीदे हों जिसने उन्हें जुगनुओं की भी कीमत बता दें। वो हरगिज उठाते नहीं फोन लेकिन चलो फिर भी उनका ही नंबर मिला दें। गया ही नहीं जो

बदतमीज बहू

बदतमीज बहू *********** "उठो यहाँ से... अरे मैंने कहा उठो" "मम्मी जी यहाँ खिड़की के पास थोड़ी हवा लग रही है इतना अच्छा लग रहा है बैठने दो न प्लीज...?" "नहीं मैंने कहा उठो यहाँ से..." बहू को ससुराल आये हुए अभी दूसरा दिन ही था और सास अपनी सहेलियों के साथ बैठी बातें करते हुए उसपर हुकुम चला रही थी। बहू वहाँ से उठकर कमरे में चली गई तो थोड़ी देर में ही सास की आवाज फिर गूंजी। "पंखा कितना तेज़ चला दिया तुमने पूरे घर में आवाज जा रही है। इसको धीमा करो!" सास के आदेशों का पुनः अनुपालन हुआ और बहू ने पंखा धीमा कर दिया फिर मोबाइल देखने लगी।  सास ने इधर उधर करते हुए एक नज़र बहू के कमरे में दौड़ाई और फिर वहां जाकर भी बोलने लगीं। "मैंने कहा उठो... रखो मोबाइल... दिन भर यही देखोगी तो होने वाले बच्चे क्या सीखेंगे?" बात अब बहू के बर्दास्त से बाहर हो गई थी।  "देख बुढ़िया मैं कोई रोबोट नहीं हूँ जो तेरे रिमोट के इशारों पर उठूँ बैठूं ... गला दबा दूंगी तो मर जाओगी अगर ज्यादा टिर्र टिर्र करोगी तो...." "ये तो बड़ी बदतमीज है।" बाहर बैठी सहेलियों में से एक

नेता हिताय जनता दुखाय

नेता हिताय, जनता दुखाय ********************** मेरी आजी एक कहानी सुनाती थीं-  'बूढ़ा की टेंड़िया' टेंड़िया, पुराने जमाने में बाँह में पहनने वाला कड़ानुमा एक गहना होता था जो चांदी का बनता था। जिसे औरतें पहनती थीं। उसमें ये था कि कोई बूढ़ा माता थीं। जिन्होंने एक टेंड़िया बनवाया था।  नया गहना... लेकिन कोई उसके बारे में पूछ नहीं रहा था। बूढ़ा के मन में बड़ा अरमान था कि कोई पूछे तो वे उसका बखान कर सकें कि कैसे-कैसे उन्होंने इसे पाई-पाई जोड़कर हजारों खर्च करके बनाया और फिर सुनने वाले से तारीफ पा सकें। दो चार दिन तो इसी उहापोह में बीत गए कि कोई अब पूछेगा कि तब पूछेगा...? लेकिन किसी ने भी उनसे  टेंड़िया के बारे में न पूछा। वे उसे पहनकर बार-बार इधर से उधर जातीं। लोगों से हाथ मटका मटका कर बात करतीं लेकिन कोई उनके गहने की ओर ध्यान ही न देता। थक हार कर एक दिन उन्होंने अपने ही घर में आग लगा ली। आग बुझाने के लिए पूरा गाँव जुटा, यहाँ बूढ़ा फिर से टेंड़िया दिखाने के लिए हाथ मटका मटकाकर 'इधर पानी डालो ' 'उधर पानी डालो' बताती रहीं। उनका घर जलकर खाक हो गया। तब जाकर अंत में किसी ने पूछा "ब