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काम हो जाएगा

काम हो जाएगा… *************** वैसे तो इस देश में काले मुर्गे की पीठ पर बैठकर सफेद कबूतर उड़ाने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं है फिर भी इनकी संख्या में अगर कहीं पर कोई कमी नज़र आती है तो उसे पूरा करने के लिए सरकार की ओर से कर्मचारी नियुक्त कर दिए जाते हैं। उसके बाद वो लीप पोतकर समाज का ऐसा ढांचा तैयार करते हैं? जिसके आधार पर चमकीले सरकारी आंकड़े तैयार किये जा सकें।  मास्टरों की नियुक्ति बच्चों को पढ़ाने के लिए की गई थी लेकिन उन्हें पढ़ाना छोड़कर बच्चों की टट्टी का सैम्पल एकत्रित करने, गायों, बकरियों, भेड़ों आदि की गिनती करने, सरकारी दुल्हनें तैयार करने, नेताओं का स्टेज सजाने आदि अनेकों कामों की ऐसी लिस्ट थमा दी जाती है जिसमें उलझकर उनकी पूरी नौकरी कब निकल जाती है इस बात का उन्हें पता ही नहीं चलता है। जिसके कंधों पर देश का भविष्य सुधारने की जिम्मेदारी होती है वे अपने ही बच्चों को नहीं सुधार पाते, फिर सेवानिवृत्ति के दिन जब उनके सम्मान में जलसा आयोजित किया जाता है तब उन्हें याद आता है कि अच्छा तो मैं मास्टर था। मुनिया ऐसे ही एक सरकारी आँगनवाणी केंद्र की मुख्य अध्यापिका थी। कोई मुझसे पूछता है