ग़ज़ल
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 ======================================= [८९] अपने हक के पहरे पर तो, लाठी डंडे भाले हैं कितने बच्चे भूखे नंगे उसने हाथी पाले हैं। अंतर हो उन्नीस बीस का तब तो थोड़ा सब्र करें सोने की थाली है उनकी अपने टूटे प्याले हैं। अपनी सारी अभिलाषाएं बंद रह गईं फाइल में दस्तक उनके घर पर होगी जो नेता के साले हैं। हमको तो दुत्कार रहे हैं सूंघ पसीने की बदबू जिनके मुंह से विस्की गुजरी वे सारे मतवाले हैं। वे सारे परधान हो गए जो थे हत्या आरोपित जो थे गुंडे और मवाली वे सब संसद वाले हैं। कंकर हो तो छाने बीनें मिट्टी हो तो धुल जाए राजनीति की थाली में तो दाल भात सब काले हैं। 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 ======================================= [८८] इश्क किहेव लतियावा जइहौ बहुतै चटपटियावा जइहौ बप्पा तोहरे जैसै सुनिहैं खेतन मा मचियावा जइहौ अम्मक अपने