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Showing posts from September, 2019

ग़ज़ल

🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 ======================================= [८९] अपने हक के पहरे पर तो, लाठी डंडे भाले हैं कितने बच्चे भूखे नंगे       उसने हाथी पाले हैं। अंतर हो उन्नीस बीस का तब तो थोड़ा सब्र करें सोने की थाली है उनकी अपने टूटे प्याले हैं। अपनी सारी अभिलाषाएं बंद रह गईं फाइल में दस्तक उनके घर पर होगी जो नेता के साले हैं। हमको तो दुत्कार रहे हैं सूंघ पसीने की बदबू  जिनके मुंह से विस्की गुजरी वे सारे मतवाले हैं। वे सारे परधान हो गए जो थे हत्या आरोपित  जो थे गुंडे और मवाली वे सब संसद वाले हैं। कंकर हो तो छाने बीनें मिट्टी हो तो धुल जाए राजनीति की थाली में तो दाल भात सब काले हैं। 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 ======================================= [८८] इश्क किहेव लतियावा जइहौ बहुतै चटपटियावा       जइहौ  बप्पा तोहरे         जैसै सुनिहैं  खेतन मा मचियावा      जइहौ  अम्मक अपने &nbsp

ग़ज़ल

कण-कण में कोहराम मचा है अल्ला अल्ला राम मचा है। मानवता की बोटी बोटी कुर्सी का संग्राम मचा है। इनका कीचड़ उन्हें लगाकर नीला लाल सलाम मचा है। किसकी कौन खैरियत पूँछे चखना बोटी जाम मचा है। पन्ने फाड़ दिए समता के बेगी और गुलाम मचा है। योगा तुलसी हल्दी चंदन बिल्कुल झंडू बाम मचा है। कोप भवन कैकेई दशरथ घर घर सुबहो शाम मचा है। #चित्रगुप्त

ग़ज़ल

तुम्हीं हो गांव की जनता तुम्हीं सरकार मुखिया जी। चराचर कर रहे तेरी ही जै जै कार मुखिया जी। पचाया ताल पोखर सब डकारें भी नहीं आईं कमीशन रोड में खाकर मंगाई कार मुखिया जी। पड़ी मिड मील की दलिया तेरे भैसों के नादे में बड़े शातिर शिकारी हो बड़े मक्कार मुखिया जी गरज थी वोट की तब तक दिखाए ख़्वाब सतरंगी पड़ा जब काम मेरा तो रहे दुत्कार मुखिया जी। कहीं सड़कें मिलीं उजड़ी, कहीं पर नल बिना पानी कहीं पर नालियां टूटी बड़े उपकार मुखियाजी। बनाया बेटियों बहुओं की खातिर जॉब का कारड दिखाया काम कागज में कई परकार मुखिया जी। तुम्हारे झूठ तो सारे छपे हैं इश्तहारों में तुम्हारे कारनामों से भरे अखबार मुखिया जी। #चित्रगुप्त

गोलू की बातें

//गोलू की बातें// गोलू अभी दस साल का है और अपने माँ बाप के साथ सऊदी अरब में रहता है। जो जन्म के बाद दूसरी बार अपने गांव आया है। उसी से मिलने के लिए उसके चाचू यानी कुलदीप... जो कि भारतीय सेना में हैं, छुट्टियां लेकर आये हुए हैं। पर अचानक एक तार के आ जाने से सब गड़बड़ हो गई है। कारगिल का युद्ध शुरूं हो चुका है और सभी जवानों की छुट्टियां रद्द कर दी गईं हैं। "आ गोलू बैठ तेरी सऊदिया की कहानियाँ सुनते रहने का बहुत मन था पर क्या करूँ मेरा बुलावा आया गया।" अपना सामान बांधते हुए कुलदीप अपने भतीजे से बात भी करता जा रहा है। "अच्छा सुन... तेरी वो दोस्त रेहाना से बात हुई कि नहीं...? जिसके बारे में तू अक्सर बताता रहता है।" "बात तो होती ही रहती है चाचू... आखिर वो ही तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है। और आपको पता है चाचू उसके चचा जान भी आर्मी हैं। वो तो छुट्टियों में वहाँ आते रहते हैं। बस आप ही हैं जो नहीं आते....।" "क्या करते बेटा यहाँ माँ बाबू जी को भी देखना है... कैसे आता?" कुलदीप का मन अधीर हो रहा था। इसी कारण उसके मुंह से निकलने वाले अल्फाज भी भारी हो रहे थे। उसक

कंजूस

//कंजूस// "पापा आइसक्रीम लेनी है" रूबी ने कहा तो पापा ने जेब में हाथ डालकर बाहर निकाला और न में सिर हिला दिया। "खानदानी कंजूस हैं ये तो इनके जेब से धेला भी नहीं निकलने वाला ... तुम चुप ही रहो बेटा।" मम्मी ने आंखे तरेर कर ये बातें कहीं तो दोपहर की धूप में गर्मी और बढ़ गई। वे बस स्टैंड पर पहुँचे तो सामने बस खड़ी थी। "इसी में बैठ लें पापा?" रूबी ने कहा तो पापा ने जेब में हाथ डालकर निकाला और फिर से  न में सिर हिला दिया। "इनको तो कुछ बोलना ही बेकार है बिटिया वो बुढ़िया मर गई पर सूमों-दलिद्दरों वाले पूरे लक्षण इन्हें सिखा गई है। ये 'कुड़कुड़े' (एक प्रकार की जुगाड़ गाड़ी जिसे पम्पिंग सेट वाला इंजन लगाकर बनाया जाता है) पर ही बैठकर जाएंगे। इन्हें दो रुपये बचने से मतलब है बीवी बच्चे गर्मी में सड़ते हैं तो सड़ते रहें।" मम्मी बोलती रहीं पर पापा गमछे से अपने कुर्ते की धूल झाड़ते हुए चलते रहे। कुड़कुड़े में बैठकर वे अपने नजदीक वाले बाजार तक तो पहुँच गये थे। वहां से उनका गांव चार किलोमीटर और था। रूबी के पापा उस ओर जाने वाले दो तीन टेम्पो वालो से बात करने के बा

दकियानूस

//दकियानूस// "कहाँ रोज रोज ऑटो में धक्के खाती हो सुप्रिया... आओ बैठो आखिर तुम्हारा घर भी तो मेरे रास्ते  में ही है। मैं तुम्हें छोड़ दूंगा...।" " वो तो ठीक है सर पर देखने वाले भला बुरा कहेंगे। और मैं नहीं चाहती कि कोई फालतू का इश्यू बने" "कुछ नहीं होता सुप्रिया ... आओ बैठो। ऐसी सोंच को मैं कब का तौबा कर चुका हूँ। और अगर कोई ऐसा सोंचता भी है तो मुझे बस तरस आती है उसकी सोंच पर। मैं बिल्कुल भी दकियानूसी मानसिकता को बर्दाश्त नहीं करता। जिसने जो बोलना हो बोलता रहे तुम्हें बैठने में ऐतराज नहीं... मुझे बिठाने में तकलीफ नहीं तो फिर देखने वालों का क्या...? जिन्हें अच्छा न लगे वो अपनी आंखें  फोड़ ले। दुनिया चाँद पर प्लाट खरीदने का प्लान बना रही है। और हम हैं कि कौन किसके साथ आ जा रही है अपना पूरा सामर्थ्य इसी को सोंचने में ब्यर्थ कर रहे हैं। " "तो क्या करूँ?" "अरे बैठो न यार तुम" थोड़ी ही देर में मोहन की बाइक सुप्रिया को बिठाकर हवा से बातें करने लगी। "सर रास्ते मे कहीं मेम ने देख लिया तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी" "तुम उसकी चिं

ग़ज़ल

कूजागर तेरा क्या रब से नाता है। तू कैसी कैसी तश्वीर बनाता है। ठीक ठिकाना क्या दो पल के जीवन का सदियों वाले तू क्यों प्लान बनाता है। रचने वाले ने रच डाला है ऐसा आईने में तू क्या रोज़ बनाता है। क्यों करता है सबसे मेरी बदनामी उसके घर तो तू भी आता जाता है। नैनोनक्श उभर आते हैं तेरे ही जब कोई मेरी तश्वीर बनाता है। #चित्रगुप्त

ग़ज़ल

ये इक रोज सफल होगा। आज नहीं तो कल होगा। मौसम होगा पतझड़ का रिश्तों का जंगल होगा इश्क मिलेगा गोली मे हुस्नो का बोतल होगा। बच्चे सिगरेट फूंकेंगे बीड़ी खैनी फल होगा। फिल्मी गानों के मंतर दारू गंगा जल होगा। गांजे पूजे जाएंगे शापित तुलसीदल होगा। ना ही प्रश्न खड़े होंगें ना ही कोई हल होगा। #चित्रगुप्त