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बड़े साहब बड़े कवि

बड़के साहब बड़के कवि ******************* साहब को कुछ दिन पहले तक संगीतकार बनने की खुजली लगी थी। तभी उन्होंने दो चार तंबूरे मंगवा लिए थे। उसे दो चार दिन ठोंका पीटा बजाया फिर चार छः बार हाथ काट लेने के बाद उन्हें ये अकल आ गई कि संगीत उनके वश का नहीं है।  बड़ा साहब होना कोई इतनी छोटी बात तो होती नहीं है कि वो इतनी आसानी से हार मान लें। उन्होंने थोड़ा सा दिमाग लगाया जो कि है भी उनके पास थोड़ा ही तो कविता के जसामत की शामत आ गई। उन्होंने प्रेम कवियों पर मर मिटने वाली आधुनिकाओं के बारे में बारे में सुन रखा था। इस आकर्षण ने पहले भी उनका जीना हराम किया था लेकिन तब इस बीज में अंकुरण नहीं हो पाया था। समय के हवा पानी से धरती फूटी और अंकुर बाहर निकल आया।  कविताओं की करीब दर्जन भर किताबें मंगाकर उसे हफ्ते भर सिरहाने रखकर सोने के बाद उन्हें इस बात का एहसास होने लगा कि वो कवि ही हैं। फिर क्या था उन्होंने कलम पकड़ ली और सादे कागज का गला घोटने पर उतारू हो गए।  "बड़े साहब कविता लिख रहे हैं।" एक चपरासी ने आकर दफ्तर में सूचना दी।  बड़े बाबू जिन्हें मोबाइल पर कुछ भी लिखना नहीं आता था। उन्होंने फौर