ग़ज़ल
घूस लेकर नौकरी जो बांटने में दक्ष है।
वो ही अनुशासन समिति का केंद्र में अध्यक्ष है।
फैसला लिक्खा धरा है साफ पहले से अगर
तब बताकर क्या करोगे क्या तुम्हारा पक्ष है।
बस युधिष्ठिर की तरह उत्तर कोई देता नहीं
प्रश्न लेकर के खड़ा हर आदमी ही यक्ष है।
इस धरा का भार ढोएंगे नहीं गमलों के पेड़
अब प्रकृति का कोप सबके सामने प्रत्यक्ष है।
एक बैठा पेट पर खाली लपेटे संविधान
दूसरे ने नोट से ही भर लिया गृह कक्ष है।
सीबीआई और ईडी की अघोषित घोषणा
राज जिसका भी रहेगा वह हमेशा स्वच्छ है।
बेवफाई में फकत दुनिया की हालत चित्रगुप्त
सिर्फ इतना जान लो वह आपके समकक्ष है।
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