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Showing posts from March, 2019

समय

//समय// "नाऊ ठाकुर राम-राम"... आगंतुक ने अपनी छड़ी ठुड्डीयों पर टिकाकर पड़ी बेंच पर बैठते हुए अपने आने का संकेत दिया... राम- राम साब जी! जमुना ने बाल काटते हुए ही प्रत्युत्तर किया। 'ये तो अपने कलेक्टर साहब है' उनपर नजर पड़ते ही जमुना मन ही मन मुस्कुराया... नौकरी में थे तो भाव ही नहीं मिलते थे। उस समय जो राम-राम का जवाब देना भी अपनी तौहीन समझते थे आज पहले ही सलाम बजा रहे हैं। बेटे बहुओं ने मिलकर सारी हेकड़ी निकाल दी... अगर मनहूसियत आदमी के चेहरे से ही न झलकती हो न ? तो आदमी के बड़ा होने का कोई मतलब नहीं है। जितना बड़ा पद उतना बड़ा मनहूस... कर्मचारियों पर धौंस जमाने के लिए चेहरे के तापमान का छत्तीस डिग्री में होना अनिवार्य है। वे हंसे मतलब बॉसगीरी गई गड्ढे में... वहीं बात अगर अपने कलेक्टर साहब की हो तो कहना ही क्या? वे हमेशा मुंह फुलाये, सिर झुकाए और माथा सिकोड़े ही नजर आते थे। किसी से बोलना तो दूर वे दुआ सलाम का जवाब भी घुडककर ही देते थे।  किसी को भी किसी भी काम के लिये जब तक दो चार दिन चक्कर नहीं कटवा लेते थे। तब तक उन्हें अपने बड़प्पन का यकीन नहीं होता था। यकीनन जमुना अप

चोरी

//चोरी// दुकानदार का एक हाथ पड़ते ही "चंदू" जमीन पर  गिर पड़ा... और हाथ से ब्रेड की थैली छिटककर बीच सड़क पर जा गिरी थी। "चोरी करता है, हरामजादे...." दुकानदार हाथों और लातों से एक-वसनी  चंदू  की सेवा में तन्मय गालियों पर गालियां दिए जा रहा था। "गलती हो गई बाऊ जी... गलती!"  धूलधूसरित चंदू हाथ जोड़े बार -बार दुकानदार से उसे छोड़ देने की विनती कर रहा था। तमाशाइयों की भीड़ जमा हो गई थी। जिनकी उपस्थिति में दुकानदार और अतिरिक्त जोश  के साथ उसे नोच घसोट रहा था। सड़क पर पड़े ब्रेड के ऊपर से साइकिल रिक्शों के गुजर जाने के कारण उसका  चूरमा बन गया था। पर प्लास्टिक की थैली में पैक होने के कारण उसका आयतन अब तक प्लास्टिक के आकार तक ही सीमित था। एक कुत्ता आया और ब्रेड की थैली को उठाकर चल दिया। अब तक चंदू के ऊपर दुकानदार की पकड़ भी ढीली हो चुकी थी। छूटते ही, वह बिजली की फुर्ती से भागा और कुत्ते के मुंह से ब्रेड की थैली को छीनते हुए सामने की गली में गुम हो गया। भीड़ अब भी तमाशा ही देख रही थी।

फर्स्ट लाइट

//फर्स्ट लाइट// पपीहे ने फिर से बोलना शुरूं कर दिया था। हवाओं की सुरसुराहट उसके कानों में विष घोलते हुए चादर को कोने  से उड़ाकर आधे बिस्तर तक ले आई थी। मुनकी ने करवट बदलते हुए अपना हाथ बिस्तर के दूसरे तरफ लगाया और चौंक कर उठ गई। विधवा स्त्री को परपुरुष के सपने... राम राम राम राम... ये क्या अनर्थ कर रहे हो भगवान... उसने गले से रुद्राक्ष की माला निकाली और जपने लगी। काफी देर माला फेरने के बाद उसे अहसास हुआ कि वो राम-राम न कहकर रघु-रघु बोले जा रही है। और वह झटके से उठकर खड़ी हो गई। झींगुरों की आवाजें भी रात के साथ-साथ ठंडी पड़ती जा रही थीं। कहीं दूर से सियारों की आवाजें आनी शुरूं हो गई थी। आधा-अधूरा चाँद भी अपनी पूरी कसक  के साथ उसके माथे पर चमक रहा था। पर मन का तूफान था कि शांत होने के बजाय और उमड़ घुमड़ रहा था। मुनकी धीरे-धीरे छत से नीचे उतरने लगी। सीढ़ियों पर आहट पाकर उसकी माँ भी जाग गई। क्या हुआ रे मुनकिया...? कहाँ जा रही है? कहीं नहीं अम्मा थोड़ा नाली पर जा रही हूं। उसने बड़ी गैरजिम्मेदारी से जवाब दिया और नीचे उतर गई। मन में इतनी खिन्नता और शरीर में इतना भारीपन उसे कभी महसूस नहीं हुआ था

फर्स्ट लाइट

कभी रोटियों की चिंता कभी कपड़ों की फिक्र तो कहीं मकान की आपाधापी फिर भी तुम्हारी जिद और मेरी मजबूरियों के बीच सिर्फ मेरी तरेरी हुई आंखें ही नुमाया हुई हजार बार टूटकर भी अकड़ा रहा तुम्हारे मान की खातिर तुम्हें डांट कर कितनी बार छुपाया था अपनी कमतरी ताकि तुम हंस सको खिलखिलाकर और कायम रहे तुम्हारा यकीन मेरी मर्दानगी पर मैं और मेरा सब तुम्हारा था और बस एक तुम थे जिसे मैं अपना समझने के भ्रम में था। और तुम थे जो समझते रहे मुझे जालिम ही उम्र भर

दम्भ

//सबसे इम्पोर्टेन्ट बात..// पीछे कुछ आहट सी हुई तो जवान ने होंठों पर उंगली रखते हुए उसे खामोश रहने का इशारा किया और गिद्ध दृष्टि टारगेट पर जमाये हुए उसके नजदीक आने की प्रतीक्षा में दरख़्त की आड़ लिए चुपचाप पड़ा रहा.... दुश्मन के कारगर रेंज में आते ही जवान ने फायर खोल दिया, और देखते ही देखते दर्जन भर से अधिक दुश्मनों की लाशें लंबायमान हो गईं। पूरी पल्टन में जश्न का माहौल था। सिपाही तो अपनी कामयाबी पर फूला ही नहीं समा रहा था कि एक ओहदेदार ने उसे आकर ये फरमान सुनाया कि समादेशक महोदय ने उसे बुलाया है। शाबाशी पाने की उम्मीद में जवान भी फौरन उनके दफ्तर में हाजिर हो गया.... "अबे तू है कौन..?" उसे देखते ही समादेशक का पारा सातवें आसमान पर था। मैं कुछ समझा नहीं साब... जवान ने सकुचाते हुए सवाल किया। अबे तूने कितने मारे कितने गिराए उसकी ऐसी की तैसी पहले तो तू ये बता कि जब मैं तेरे पीछे तक आया उस समय तूने मुझे 'जयहिंद' क्यों नहीं बोला...? समादेशक गुस्से में लाल हो रहे थे। अरे सर वहाँ आपको विष करने से ज्यादा जरूरी उन दुश्मनों पर नजर रखना था। वरना अगर उन्हें हमारे होने