समय
//समय// "नाऊ ठाकुर राम-राम"... आगंतुक ने अपनी छड़ी ठुड्डीयों पर टिकाकर पड़ी बेंच पर बैठते हुए अपने आने का संकेत दिया... राम- राम साब जी! जमुना ने बाल काटते हुए ही प्रत्युत्तर किया। 'ये तो अपने कलेक्टर साहब है' उनपर नजर पड़ते ही जमुना मन ही मन मुस्कुराया... नौकरी में थे तो भाव ही नहीं मिलते थे। उस समय जो राम-राम का जवाब देना भी अपनी तौहीन समझते थे आज पहले ही सलाम बजा रहे हैं। बेटे बहुओं ने मिलकर सारी हेकड़ी निकाल दी... अगर मनहूसियत आदमी के चेहरे से ही न झलकती हो न ? तो आदमी के बड़ा होने का कोई मतलब नहीं है। जितना बड़ा पद उतना बड़ा मनहूस... कर्मचारियों पर धौंस जमाने के लिए चेहरे के तापमान का छत्तीस डिग्री में होना अनिवार्य है। वे हंसे मतलब बॉसगीरी गई गड्ढे में... वहीं बात अगर अपने कलेक्टर साहब की हो तो कहना ही क्या? वे हमेशा मुंह फुलाये, सिर झुकाए और माथा सिकोड़े ही नजर आते थे। किसी से बोलना तो दूर वे दुआ सलाम का जवाब भी घुडककर ही देते थे। किसी को भी किसी भी काम के लिये जब तक दो चार दिन चक्कर नहीं कटवा लेते थे। तब तक उन्हें अपने बड़प्पन का यकीन नहीं होता था। यकीनन जमुना अप