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Showing posts from August, 2022

डर

डर **** मेरा डर ऐसा नहीं है  कि गोधरा कांड कर दूं या फिर जला ही दूँ पूरा गुजरात   मेरा डर ऐसा भी नहीं है कि बम्बई में बम फोड़ दूँ अखलाक को पीटकर मार दूँ कश्मीर में काला झंडा गाड़ दूं पैगम्बर के लिए दिगंबर हो जाऊँ भगवान के लिये भगवा फहराऊँ पृथ्वीराज का जयचंद हो जाऊं सिराजुद्दौला का मीरजाफर बन जाऊं मेरा डर ऐसा भी नहीं है कि बामियान का तालिबान बनूँ या फिर ईराक, अफगानिस्तान का अमेरिका यहूदियों के ख़िलाफ़ वाला  हिटलर बर्बर शाशकों में ईदी अमीन या चीन के शहर नानजिंग में घुसा जापान  मेरा डर तो उस शांता ताई का डर है। जो मुंबई में मेन होल के पास जलभराव होने पर रात भर डंडा लिए इसलिए खड़ी रहती है कि कोई इसमें गिर न जाय। मेरा डर तो उस दशरथ मांझी का डर है। जिसने पूरा पहाड़ ये सोचकर तोड़ दिया कि अगली बार जब कोई उसकी बीवी की तरह  बीमार हो तो उसे चालीस किलोमीटर घूमकर न जाना पड़े। मेरा डर उस पत्रकार का भी डर नहीं है। जो अभिव्यक्ति की आजादी ख़तरे में है कहकर  दिन भर नॉन स्टॉप बोले। मेरा डर उस बुधिया का डर है  जो कोटेदार से आधा राशन मिलने पर भी कारण नहीं पूछ पाती। मेरा डर उस लीडर का भी डर नहीं है जो सत्ता से बाहर

एक समंदर गहरा भीतर

'वेद मित्र शुक्ल' कवियों की भीड़ में कबीर की लुकाठी लिए यथार्थ के धरातल पर खड़ा एक ऐसा कवि जो कहानियां भी लिखता है, शोध प्रबंध भी लिखता है, आलोचना भी लिखता है। बाँसुरी भी बजाता है, तबला भी बजाता है...। मिलने पर जो बात बोलना भूल गया था वो यह कि "भैया सब आप ही कर लोगे क्या या कुछ मेरे लिए भी छोड़ोगे।" अंग्रेजी साहित्य और मेरा संबंध घोड़े और भैंसे वाला ही रहा है इसलिए सॉनेट का नाम तो सुना था पर इसके बारे में ज्यादा कुछ पता न था।  बाद में पता चला सॉनेट अंग्रेजी कविताओं की एक जानी मानी विधा है। हिंदी में सॉनेट को एक विधा के रूप में स्थापित करने का श्रेय 'त्रिलोचन शास्त्री' को जाता है।  यह एक मुश्किल विधा है, जिसमें पहली और चौथी पंक्ति का तुक, साथ ही दूसरी और तीसरी पंक्ति का तुक समान होता है। उदाहरण के लिए देखें- जब भी कबिरा के पथ पर है बाजार पड़े गुजरे पर नहीं खरीदे कुछ यों राम राम जपता जाए पर कबिरा का था बड़ा काम सब सेठ उठाते लाभ इसी का चतुर बड़े।  काम मुश्किल है तो इसे करने वालों की संख्या भी कम ही है। पिछले लगभग दो दशकों से ढूढ़-ढूढ़ कर किताबें पढ़ने के बावजूद ये पहला सॉन

नए आये साहब

नए आये साहब ************ नए आये साहब ने जैसे ही दफ़्तर में प्रवेश किया वो वहाँ के हालात देखकर आग बबूला हो गये। साहब का आग बबूला होना ही उनके बड़े पद का परिचायक होता है। पहले तो सब कर्मचारियों ने यही सोचा था लेकिन थोड़ी देर बाद ही उनको अपनी गलती का एहसास हो गया कि उन्होंने ग़लत सोचा था। साहब ने आते ही पाँच से सात मिनट में दस से बारह ये बता दिया था कि वो अलग टाइप के आदमी हैं।  अलग टाइप के आदमी वाली बात पर सब कर्मचारियों ने उन्हें गौर से देखा। उनका मुँह आँख नाक कान आदि सब अपनी अपनी जगह पर ही थे। हाथों और पैरों की स्थिति भी आम इंसानों जैसी ही थी। एक खोजी कर्मचारी ने उनके वाशरूम में चोरी से कैमरा लगा कर इस बात की भी तस्दीक की कि उनके आउट गोइंग वाले पुर्जे भी अपनी मानवीय स्थिति में ही थे। सब जांच पड़ताल कर लेने के बाद एक पुराना कर्मचारी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि साहब का बाकी सब तो अपनी जगह में ही है बस दिमाग ही ऐसा है जो उनकी खोपड़ी में न होकर घुटनों में फिट हो गया है इस तरह से वो अलग टाइप के आदमी हैं। साहब लोग जब तक अपने कर्मचारियों पर बिन बात ही गुस्सा नहीं दिखाते तब तक उन्हें साहब होने की फीलिंग

तीसरा आदमी

तीसरा आदमी *********** गाँव से मुख्यमार्ग की ओर एक छोटी सी सड़क जाती थी। जिसके दोनों ओर आम नीम जामुन पीपल पाकड़ शीशम बड़हर आदि के पेड़ लगे हुए थे। शीशम के पेड़ से एक सूखी हुई लकड़ी टूटकर बीच सड़क पर गिरी। लकड़ी ज्यादा मोटी और बड़ी तो नहीं थी लेकिन उसका आकार इतना तो था जिससे रास्ता अवरुद्ध हो सके। उसे पैदल तो आसानी से पार किया जा सकता था। लेकिन साइकिल या मोटरसाइकिल से दाएं बाएं होकर निकलना पड़ता। मुश्किल तेज गति से आने वाले के लिए था या रात में कोई पैदल भी जाता तो उसमें फंसकर गिर सकता था। शाम का वक्त था और आने जाने वालों की संख्या बेहद कम... कुछ देर बाद पहला आदमी उस ओर से गुजरा। उसने बगल के खेत वाले को जो थोड़ी दूर पर निराई कर रहा था उसे आवाज देकर कहा- "भैया! लकड़ी टूटकर गिरी है जाते समय उठाकर ले जाना..." कुछ और देर बाद दूसरा आदमी भी गुजरा उसने लकड़ी को पड़ा देखा तो कहने लगा- "कैसे-कैसे आदमी हैं बीच रास्ते में इतनी बड़ी लकड़ी पड़ी है लेकिन कोई हटाएगा नहीं, लोग मोटरसाइकिल से भर्र से आएंगे और कमर टेढ़ा करके इधर-उधर से निकल जाएंगे लेकिन ये भी नहीं है कि एक लात इसमें भी मार दें और ये साइड हो ज