दोहे **** बिन बहुमत सरकार सी, जी डी पी का हाल ये भी नीचे को चली, मानवता की चाल। अस चमचों की चाकरी, सत्ता के दरम्यान निष्ठा साधे घूमते, जस कातिक में स्वान। लीडर कुर्सी ताकते , ऐसे आठों याम कोई बच्चा देखता जैसे पक्का आम। नौकरशाही को लगा ऐसा पद से राग मणि की रक्षा में लगे जैसे काले नाग। सच का सौदा जो करे, रूखा सूखा खाय जो झूठों को साध ले, सीधे दिल्ली जाय। जिसने घर भरना हुआ, कांगरेस पतियाय। दंगाई पाखंडियों, को बीजेपी भाय। कार्ल मार्क्स के कालिये, करते जन की बात लेकिन जब सत्ता मिले, जन को मारें लात। जनता दल के 'जन' हुए, बीवी साले पूत सुपरिम लीडर हो गये, घोटालों के भूत वादी बड़े समाज के, मुल्लायम यक नाम भाई बेटा लड़ मरे, तब से खेल तमाम राजनीति के पारखी, असली रामबिलास सत्ता में जो भी रहे, ये उसके ही ख़ास। माया हाथी की हुई चारों खाने चित्त नीले झंडे से सधे, ना तो वात न पित्त ये नफ़रत के सूरमा, भैया असदुद्दीन ढिबरी लेकर ढूढ़ते, हर घटना पर 'दीन' ज्ञानीजन देते फिरें, हर घटना पर ज्ञान ये ही असली काइयां, टी वी शो की शान। #चित्रगुप्त