12 ग़ज़लें

जोर तो सबने लगाया देर तक।
हाथ लेकिन कुछ न आया देर तक।

एक पल में रूठकर वो चल दिया
और फिर मैंने बुलाया देर तक।

खोलने वाले ने जहमत की नहीं
यूँ तो दरवाजा बजाया देर तक।

मैं खड़ा हूँ छू लिया है आपने
सोचकर ही मुस्कुराया देर तक

शोर से जैसे परिंदे उड़ गये
तार सा मैं थरथराया देर तक

रूठकर खुद ही तुम्हारी बात से
और ख़ुद को ही मनाया देर तक

जानता हूँ जो गया आता नहीं
हाथ को फिर भी हिलाया देर तक।

हो कोई शायद इशारा इस तरफ
सोचकर नजरें मिलाया देर तक।

(2)

उम्मीदों को अपनी जरा सी हवा दें
चले आइये फिर ये दीपक बुझा दें।

तमन्नायें अठखेलियाँ कर रही हैं
इन्हें अपनी बाहों का झूला झुला दें।

अगर तू हमें देखकर मुस्करा दे
तो खो जायँ तुझमें ही दुनिया भुला दें।

निगाहें मिलाकर निगाहों की मदिरा
मुझे तू पिला दे तुझे हम पिला दें

लिखी हों जहाँ नफरतों की ज़बानें
वो मजहब की सारी किताबें जला दें

हैं नक्काशियों के कई फूल जिनपर
कहो कैसे बूढ़ी  दीवारें गिरा दें

कई चाँद सूरज खरीदे हों जिसने
उन्हें जुगनुओं की भी कीमत बता दें।

वो हरगिज उठाते नहीं फोन लेकिन
चलो फिर भी उनका ही नंबर मिला दें।

गया ही नहीं जो वो क्यों आएगा फिर
मुंडेरों से जाकर कबूतर उड़ा दें।

वो तो सुन ही लेंगे बसे हैं जो दिल में
जरूरी नहीं है उन्हें भी सदा दें।

है मुमकिन चला दें वे मुझपर ही गोली
अगर दिल में क्या है उन्हें सब बता दें।

(3)
तेरी तश्वीर को पूरा नहीं होने देते।
हम किसी चीज को तुझसा नहीं होने देते।

तेरे जाने का असर हमपे हुआ है ऐसा 
अब किसी और को अपना नहीं होने देते।

छीन ले कोई खिलौने ही दिखाकर टॉफी
दिल को रोता हुआ बच्चा नहीं होने देते।

काट ले जाएगा कोई भी जरूरत के लिए
इसलिए पेड़ को अच्छा नहीं होने देते।

चंद रिश्ते जो सजाये हैं फूलदानों में
गाँव को शहर के जैसा नहीं होने देते

(4)

तेरा चेहरा जरा देखता।
शोखियां हर अदा देखता।

तुम अगर साथ होते तो मैं
ख़्वाब कोई बड़ा देखता

चाँद तारों सी आंखे तेरी
हीरे मोती जड़ा देखता।

तुम नहीं थे जहाँ उस तरफ
मुड़ भी जाता तो क्या देखता

भूख को जीत जाता तो फिर
जिंदगी का मज़ा देखता।

मिल रहे थे गले वो उन्हें
और कैसी सजा देखता।

तुम खड़ी थी सुराही लिये
और क्या जलजला देखता।

(5)
आईने की खूबी है
थोड़ा इसमें तू भी है।

उतराया मैं भी थोड़ा
थोड़ा तू भी डूबी है।

इश्क में कुछ भी सुन लेंगे
कह दे दिल में जो भी है

वादे सारे दुहरा दूँ
मुझको याद बखूबी है।

यूँ ही हैं ये बेरुखियाँ
या तू मुझसे ऊबी है।

(6)
जहाँ दिल जोड़ने बैठे वहीं से फोड़ लाये सर
बहुत सुंदर, बहुत सुंदर, बहुत सुंदर, बहुत सुंदर,

अगर पूछा कभी दिल मे है क्या वो रूठकर बोली
तुम्हारा सर तुम्हारा सर तुम्हारा सर तुम्हारा सर।

मेरा काशी, मेरा मथुरा, मेरा काबा मदीना सब
तुम्हारा दर तुम्हारा दर तुम्हारा दर तुम्हारा दर।

अधूरे हैं कई मिसरे मुकम्मल शेर होने को
वहीं छत पर वहीं छत पर वहीं छत पर वहीं छत पर

भला भी चाहता है तू अगर कुछ आदमीयत का
मोहब्बत कर मोहब्बत कर मोहब्बत कर मोहब्बत कर

(7)
बिन तेरे यूं मंजिल और सफ़र लगता है।
जैसे माँ के बिन बच्चे को घर लगता है।

शोहरत पाकर उड़ने वालों मत भूलो ये
जब मरना हो तब चींटी को पर लगता है।

दिल के अंदर आना हो तो ऐसे करना 
झुककर आना दरवाजे से सर लगता है।

नुक़्ते से लेकर बिंदी तक याद आती हैं
पहला-पहला ख़त लिखने में डर लगता है।

बाकी सब है बस शब्दों की ब्यर्थ जुगाली
शेर वही है जो सीधे दिल पर लगता है।

(8)
आईना देख देख के शरमाये हुए दिन
तेरे बगैर होते हैं मुरझाये हुए दिन।

कैसे तेरे बगैर हैं ये बात न पूछो 
जख्मों से भरी रात है विष खाये हुए दिन।

जब से गए हो खूंटी से लटके ही हुए हैं
बिस्तर की तरह बांध के लटकाये हुए दिन

जब जब भी तेरी याद में सोती नहीं रातें
जमहाइयों में कटते हैं अलसाये हुए दिन।

हर ओर घूरने में हैं मनहूस निगाहें
सहमें हुए ढल जाते हैं बल खाये हुए दिन।

जाना है कहाँ ये भी बताते नहीं हैं कुछ 
मंजिल के लिए दौड़ में भरमाये हुए दिन।

कर लो हसीन कितनी भी अब वस्ल की रातें
भूले से भी भूलेंगे न तरसाये हुये दिन।

(9)
न कोई गंगा न कोई यमुना न कोई सरजू बनाऊंगा मैं।
तुम्हारी आंखें हैं झील जैसी इसी से संगम कराऊंगा मैं।

समय पे आना जगह पे मिलना फुलाके मुँह फिर नज़र चुराना
ये नाक तेरी पकौड़े जैसी इसे पकड़कर हिलाऊँगा मैं। 

घुमाव वाली यहाँ की सड़कें कहीं पे गड्ढा कहीं पे नाली
बिठा के बाइक पे धीरे धीरे उसी पे झूला झुलाऊंगा मैं।

हमारा घर भी है खप्परों का यहाँ पे छत तो नहीं है लेकिन
हमारे आंगन से चाँद तारों की धूम तुमको दिखाऊंगा मैं।

जरा सा चखना उठा के सबको लगे जो मीठा उसी को खाना 
कई हैं आमों के पेड़ अपने सभी पे चढ़के हिलाऊंगा मैं।

(10)

होंठ ऊला है आँख सानी है
शेर तो आपकी जवानी है।

हुस्न मत्ला है इश्क है मक्ता 
हर ग़ज़ल आपकी कहानी है।

आँख जैसे समुंदरों का घर 
हर नदी में तेरी रवानी है।

बाढ़ बनकर चला तुम्हें छूने
कितना पागल नदी का पानी है।

ठोकरें खाके सीख जाएगा
जो भी रूखा है बदज़ुबानी है

वस्ल की रात हिज्र की बातें
रात ये भी यूँ ही बितानी है।

तू ख़ुदा है तो ख़ुदाई भी कर
बस तेरी बात आसमानी है।

(11)

निगाहों से पिलाते हो, बहक जाएं तो मत कहना
भरा मय का मैं प्याला हूँ छलक जाएं तो मत कहना

तेरा गजरा, तेरा कजरा, तेरी बातें, तेरा सजरा
किताबों की किताबत में महक जाएं तो मत कहना।

लगाकर चाँद से चेहरे पे अपने रेशमी चिलमन
कोई गुस्ताखियां मुझसे भी हो जायें तो मत कहना।

तुम्हारे यादों की सारी गवाही हिचकियां मेरी
फसाने अब मुहब्बत के जो उड़ जाएं तो मत कहना ।

तुम्हारी जिंदगी भी कागजी फूलों के जैसी है
हवा के एक झोंके से जो उड़ जाएं तो मत कहना।

(12)
धुंध सी मन में छाने लगी ।
याद फिर उनकी आने लगी।

दिल की बातों पे मुंह फेरकर
फिर से वो मुस्कुराने लगी।

उससे पूछा है जब हाले दिल
वो गजल गुनगुनाने लगी।

उनके आने की पहली ख़बर
थोड़ी राहत दिलाने लगी।

हाथ उनसे मिलाते हुए
आंख मुझसे मिलाने लगी।

खिड़कियों को शिकायत है ये
अब वो दर से बुलाने लगी।

देख कर जग की बेशर्मियाँ
शर्म को शर्म आने लगी।

(13)
उड़ानें ख़्वाब में हम भी बहुत ऊँची लगाते हैं
मगर खुलती हैं जब आँखें तो वापस लौट आते हैं

कहाँ इक फूल का गजरा अभी तक ला न पाया मैं
न जाने लोग कैसे चाँद तारे तोड़ लाते हैं

टिकी हैं बाज की नजरें हमारी साग भाजी पर
जहाँ सब  रेत में जौ डालकर मोती उगाते हैं

तुम्हारी प्यार की कसमें किसी बच्चे की टॉफी हैं
वो खाते हैं नहीं जितना कि कपड़े में लगाते हैं।

हुईं जब शादियां उनकी खत्म सब हो गया है बस
बहुत था प्यार उनमें भी पुराने खत बताते हैं।

मेरी औकात तय करती है मेरे जेब की गर्मी
अगर सूखी नदी हो  तो परिंदे लौट जाते हैं

यहाँ हर पेड़ से कह दो वो कोयल पालना सीखें
अगर है डाल खाली फिर तो उल्लू बैठ जाते हैं

(14)
वो संवरकर जो नजर आते हैं
दीद में चाँद उतर जाते हैं।

चल दिये जब वो रूबरू होकर
 टूटकर ख़्वाब बिखर जाते हैं

शोख दरिया के कंवल से सारे
हुस्न बेख़ौफ़ नज़र आते हैं।

सिर्फ लम्हात में सदियों के ग़म
वक्त कुछ यूँ भी गुज़र जाते हैं

आशियाँ रोज़ जलाकर मेरा
उनके किरदार संवर जाते हैं।

बेवफाओं की बात क्या करना
वायदों से जो मुकर जाते हैं।

उनको देखा जो रकीबों के घर 
सांप सीने से गुजर जाते हैं।
#चित्रगुप्त 

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