Posts

Showing posts from February, 2023

परंपरा

तोलनी ब्याह ************* अपने ही देश में एक ऐसी जगह है जहां पहली बार लड़की को पीरियड आने पर जश्‍न मनाया जाता है। यह अनोखी परंपरा असम के बोगांइ गांव जिले के सोलमारी में मनाई जाती है जो कि सालों से चली आ रही है। आज भी इस परंपरा को जारी रखा गया है। यहां जब लड़की को पहली बार पीरियड आता है तो उसके माता-पिता उसकी शादी केले के पेड़ से करवा देते हैं। इस अनोखी शादी को तोलिनी ब्‍याह कहा जाता है।  यह तोलिनी ब्‍याह पीरियड के पहले दिन ही किया जाता है। उसके बाद लड़की को ऐसे कमरे में रहना होता है जहां सूरज की रोशनी न पड़ें। इतना ही नहीं उसे पका हुआ खाना देने की अनुमति नहीं है। उसे केवल कच्‍चा दूध, फल खाने को दिए जाते हैं। पीरियड्स के दौरान उसे जमीन पर सोना होता है और वह किसी का चेहरा तक नहीं देख सकती है।

लघुकथा

मिसमैनेजमेंट ऑफ मैन पॉवर *********************** सरकार को अखबारी संपादकीय से पता चला कि पुलिसिया तंत्र में उच्चाधिकारियों द्वारा कई सिपाही अपनी ही खातिरदारी में लगा कर रख लिए जाने के कारण उनका सही और जरूरी इस्तेमाल नहीं हो पाता है। इसी कारण राज्य में अराजकता का माहौल है।  सरकार ने इस मसले से निपटने के लिए एक तीन सदस्यीय टीम बनाई जिसमे आईजी स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारियों को नियुक्त कर दिया।  नियुक्ति के दूसरे दिन ही इन तीनों अधिकारियों के घरों में तीन तीन दरबान, एक फूल देखने वाला एक कुत्ता घुमाने वाला, एक आने जाने वाले लोगों की देखभाल के लिए नियुक्त कर दिया गया। जिसकी संस्तुति तुम भी रखो हम भी रखें की तर्ज पर पुलिस महानिदेशक द्वारा रातों रात कर दिया गया। 

ग़ज़ल

नाम तुम्हारा मंदिर मंदिर चिपकाकर। देखेंगे हम अपनी किस्मत आजमाकर। बेर तुम्हारे हाथों से खाते हैं तो गुदगुदियां होती हैं अंदर में जाकर। पायल, झुमके, कंगन भी तुझको चाहिए मैं तो खुश हूं केवल तुझको ही पाकर। मरने का ही शौक लगा है तुझको तो इश्क मोहब्बत जो मर्जी हो तू जा कर। दिलफेकों को दिल पर काबू दे या फिर तीन चार दिल देकर इनको भेजा कर। लफ्जों के हर तीर कयामत वाले हैं जाने क्या वो बैठे हैं ऐसा खाकर। वो सागर से मिलने को जाएगी ही थक जाओगे तुम दरिया को समझाकर। #चित्रगुप्त 

दो रुपए

दो रुपए ****** ठिठुरन भरी सुबह में ट्यूशन पढ़कर लौट रहे बच्चे एक हाथ अपनी जेब में डाले और दूसरे हाथ से साइकिल का हैंडल सम्हाले झुंड में जोर जोर से बातें करते और ठठ्ठा लगाते जा रहे थे। सड़क किनारे थोड़ी थोड़ी दूर पर घर बने हुए थे। कुछ भैंसें और गायें सड़क के दोनो ओर बंधी हुई थीं। अलसाए  लोग मवेशियों को चारा पानी देते गोबर उठाते इधर से उधर आते जाते दिख रहे थे। औरतें सड़क किनारे बर्तन मांज रही थीं। कुछ छोटे बच्चे साइकिल का टायर छोटे डंडे से मारकर चला रहे थे। शकुन भी उनमें से एक था।  राम सरन पत्नी और मां की हजारों गालियां खाकर अब बिस्तर से उठा था। मुंह फैलाते हुए तीन चार अंगड़ाइयां लेने के बाद उसने अलगनी पर टंगी अपनी पैंट की जेब को खंगाला और खाली हाथ बाहर निकल कर पत्नी से पूछा - "मेरी पैंट की जेब में दो रुपए रक्खे थे तुमने निकाला क्या?" "मैं तुम्हारे पैसे निकालकर क्या करूंगी? तुम हो ही बड़े कुबेर के नाती जो तुम्हारी जेबों में पैसे भरे रहते हैं और मैं उसमे से निकालती रहती हूं।"  "मैने ये कब बोला यार? मसाला खाना था वही ढूढ़ रहा था।" "खाओ मसाला खूब खाओ अभी द

समानता

समानता ******* बरबरी नस्ल की बकरी ने जमुनापारी बकरी से पूछा - नस्ल भेद को जड़ से मिटा देने का दंभ भरने वाली मानव जाति ने आखिर हमें इतनी नस्लों में क्यों बांट रखा है? बरबरी की बात सुनकर जमुना पारी मुस्कुराते हुए बोली - ईद और नवरात्रि बीत जाने दे बहन उसके बाद मैं मनु स्मृति और रामचरितमानस पढ़कर तुझे इसका कारण बता दूंगी। #चित्रगुप्त

समीक्षा

किताब - गाती हुई औरतें विधा - गद्य काव्य लेखक - देव नाथ द्विवेदी प्रकाशक - बोधि प्रकाशन (जयपुर) मूल्य - 175 रुपए मात्र  राजेंद्र राजन की एक कविता है -- मैदान में जैसे ही पहला पहलवान आया उसकी जयकार शुरू हो गयी उसी जयकारे को चीरता हुआ दूसरा पहलवान आया और दोनों परिदृश्य पर छा गये पहले दोनों ने धींगामुश्ती की कुछ देर कुछ देर बाद दोनों ने कुछ तय किया फिर पकड़ लाये वे उस आदमी को जो खेतों की तरफ़ जा रहा था दोनों ने झुका दिया उसे आगे की ओर अब वह हो गया था उन दोनों के बीच एक चौपाये की तरह तब से उस आदमी की पीठ पर कुहनियां गड़ा कर वे पंजा लड़ा रहे हैं परिद्रिश्य के एक कोने से कभी-कभी आती है एक कमज़ोर सी आवाज़ कि उस तीसरे आदमी को बचाया जाये मगर इस पर जो प्रतिक्रियाएं आती हैं उनसे पता चलता है कि सबसे मुखर लोग दोनों बाहुबलियों के प्रशंसक या समर्थक गुटों में बदल गये हैं।  गद्य कविताएं लिखना आसान नहीं होता। उसके लिए स्टार्टर चाहिए, एक्सीलेटर चाहिए, स्पीड ब्रेकर चाहिए, सड़क पर लगे अलग -अलग निशानों की मानिंद उसमे आने वाले समय के खतरों का सूक्ष्म संकेत भी छुपा होना चाहिए। कविता वो है जो मन को गुदगुदाए भी