भगवान का इंटर व्यू

भगवान का इंटरव्यू
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भगवान सोकर उठे तो नाक से कुछ इंच दूरी पर डटे तंबूरे को देखकर सकते में आ गये। उन्होंने दोनों हाथों से जोर लगाकर तंबूरे को दूर हटाया कि तभी दनदनाता हुआ एक सवाल उनके कानों में घुस गया।

"आपको चिर निद्रा से उठकर कैसा महसूस हो रहा है?" सवाल के पीछे एक सुंदरी झूठी मुस्कान लिए खड़ी थी।

"अरे सवाल तो ठीक है लेकिन तुम कौन हो कहाँ से आई हो और बिना मेरे इजाजत अंतःपुर तक आ गई , आज सारे दरबान मर गए क्या?" भगवान जोर से चीखे।

भगवान की इस हरकत पर चित्रगुप्त दौड़कर आये और भगवान के कान में फुसफुसाने लगे "देवाधिदेव इनसे बड़ी तमीज़ से बात कीजिये ये भूलोक की पत्रकार हैं। तिल का ताड़ बनाना ही इनका काम है। इन्होंने अगर आपके बारे में कुछ उल्टा पुल्टा प्रसारित कर दिया तो आपकी टीआरपी का बंटाधार हो जाएगा। ये जिसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएं उसका बेड़ा गर्क कर दें और जिसके पीछे मुँह धोकर पड़ जाएं उसकी आने वाली सात पीढ़ियों को दिन ढलते ही भूत दिखाई दे।"

"तो क्या ये मेरे भक्तों से भी ज्यादा खतरनाक है? जो हजारों के मुफ्त की कमाई से धेला भर दान देकर खुद को सब पापों से मुक्त मान लेते हैं।" भगवान ने चित्रगुप्त से पूछा।

"कलियुग में जबसे नेताओं के भी भक्त होने लगे हैं न भगवान जी तब से इस शब्द की अहमियत एक गाली से अधिक नहीं रह गई है  इसलिए आप भक्तों की तो बात ही मत कीजिये देवाधिदेव!" चित्रगुप्त ने भगवान को समझाया तो वे चुप हो गए और इशारों से उन्हें ही पत्रकार से निपटने को कह दिया।

भगवान का इशारा पाकर चित्रगुप्त पत्रकार से मुख़ातिब हुए- "क्यों छोकरी तुम अपने देश के प्रधानमंत्री गृहमंत्री आदि का इंटरव्यू तो आज तक ले नहीं पाईं और सीधे स्वर्गलोक में भगवान का इंटरव्यू लेने आ गईं?"

"महाराज आज के समय में भगवान से मिलना आसान है लेकिन सत्ता का सुख भोग रहे नेता लोगों से मिलना बहुत मुश्किल है। सत्ता वालों का तो छोड़ ही दीजिए प्रभु हम तो नेता प्रतिपक्ष से भी नहीं मिल सकते। आप नेता प्रतिपक्ष को भी छोड़ना चाहें तो छोड़ दें अब तो सरकार का कोई ए ग्रेड अधिकारी भी हमारी  पहुँच से उतना ही दूर है जितना कि न्यायालय से न्याय।" पत्रकार ने हाँफते हुए अपनी बात रखी।

"लेकिन बहस तो तुम लोग भिन्न-भिन्न मुद्दों पर दिन में चार बार आयोजित करते हो?" चित्रगुप्त भी सवाल पूछने में कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्होंने अगला सवाल फिर से उछाल दिया। 

"हां करते हैं महाराज क्या करें पेट पालने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है। लेकिन उन बहसों में रोज-रोज वही लोग आते हैं जिनके अंदर पार्टियों ने टेप रिकॉर्डर का एक कैसेट भर कर रखा होता है वे लोग आते हैं और वही बजाकर चले जाते हैं। सवाल भी पार्टी वाले पहले ही लिखकर भेज देते हैं। हमें पूछना भी वही रहता है।" महिला पत्रकार ने सफाई दी और आगे पूछा-

"एक बात बताइए महाराज कहीं बाढ़ कहीं सूखा आपके राज में ये कैसा अंधेर हो रहा है?"

"अंधेर नहीं हो रहा है बिटिया... बादलों ने मिलकर इंद्र की कचहरी में एक 'पेड़ हित याचिका' डाली थी। उसी पर इस साल फैसला आया है। सूखा बाढ़ आँधी, तूफान ये सब तुम जो भी देख रही हो न? ये सब उसी फैसले का क्रियान्वयन है। तुम इसे ऐसा समझ सकती हो।"

"लेकिन कृपानिधान! स्वर्ग के इस फैसले से पिस तो आम आदमी रहा है न?"

"आम आदमी का मतलब जानती हो बिटिया?" चित्रगुप्त ने आगे कहा- "आम आदमी वो आदमी होता है जो अपनी मजबूरियों के प्रति लोगों की संवेदनाएं जगाकर भावनात्मक शोषण करता रहे साथ ही अपने आम आदमी होने का रोना भी रोता रहे। अब देखो न पहले तो यही पौवा पीकर वोट दे आता है फिर आने वाले पाँच साल सरकार को गालियाँ देता रहता है। जैसे सरकार इसने नहीं किसी और ने चुना हो।

पिछले कई सालों से पर्यावरण दिवस के अवसर पर लगने वाले असंख्य पेड़ इस आम आदमी की मक्कारियों का अद्भुद नमूना रहे हैं। जिसमें पौध-रोपण के नाम पर सिर्फ टहनी रोपण किया गया और अगर किसी ने गलती से पौधे लगा भी दिए तो थोड़े ही दिन में उसे तोड़कर दातौन कर लिया। अपने खेतों अपनी जमीनों के पेड़ कटवाने वाला कुकर्म अगर छोड़ भी दिया जाय तो सड़कों और नहरों के बगल में खाली पड़ी जमीनें भी तो किसी न किसी मगरू या भगेलू के खेत की मेड़ों पर ही हैं। लेकिन उसमें भी पेड़ लगाने से इनकी नानी न जाने क्यों मरती रहती है। इनको घंटे भर खैनी मलने का फुरसत है दो घंटे चिलम फूंकने की मोहलत भी है लेकिन किसी पेड़ में एक लोटा पानी डालने की फुरसत नहीं है।"

"लेकिन प्रभु बरसात के बगैर धरती तो जलकर ख़ाक हो जाएगी।"

"उसके लिए तो बिटिया सरकारी फाइलों में लगाए गए करोड़ों पेड़ों के पास जाओ और उनसे ही सवाल पूछो। कि तुम्हारा काम बादलों का पेट भरना था लेकिन तुम यहाँ बैठकर बाबुओं का पेट क्यों भर रहे हो।"

पत्रकार ने बाहर निकलकर उपर्युक्त साक्षात्कार को अपने कैमरे के दिमाग से हटा दिया। क्योंकि आज के समय में पेड़, जंगल, पर्यावरण आदिक मसलों को देखने सुनने वाला ही कौन है।

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