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Showing posts from March, 2022

लंगड़ी

लंगड़ी ****** मिज़ोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण राज्य  है। जो एक समय तक लुशाई हिल के नाम से असम का एक जिला मात्र था। लेकिन पूर्वोत्तर राज्य पुनगर्ठन अधिनियम के पास होने के ऐतिहासिक फैसले के बाद मिज़ोरम को भारत के 23वें राज्य के रूप में मान्यता मिली। मिज़ोरम जिसका शाब्दिक अर्थ  होता है 'पर्वत पर रहने वाले लोगों की भूमि' खड़ी ढलान वाली औसत ऊंचाई की पहाड़ियों से आच्छादित एक हरा-भरा प्रदेश है। विभिन्न जीवजंतुओं और पेड़ पौधों से भरे-पूरे यहाँ के वन सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। विभिन्न त्योहारों जिसे स्थानीय भाषा में 'कुट' कहा जाता है और आइज़वल महोत्सव के दौरान पारंपरिक परिधानों में बाँस-नृत्य (बम्बू डांस) करते युवक-युवतियों को देखना दूसरे लोक में सफ़र करने के समान मनोरंजक होता है। समानता चाहे लैंगिक हो या सामाजिक यहाँ के लोकजीवन में जिस प्रकार से देखने को मिलती है उसकी ऐसी मिसाल कहीं अन्यत्र शायद ही मिले। सहकारिता यहाँ के जीवन का मूल तत्व है। यहाँ के लोग जंगल को काटकर फिर उसे जलाकर उसमें कृषि कार्य करते हैं। जिसे झूम खेती कहते हैं। जंगलों की कटाई के दौरान धूप से बचने

लगेगी आग तो

लगेगी आग तो  ************ "चाचा! राम समुझ के घर में आग लगी है पूरा गाँव आग बुझाने जा रहा है, आप नहीं चल रहे क्या?" राम बरन ने खैनी मलते हुए बिगहा भर मुस्कान बिखेरी।  ईर्ष्या रखने वालों की ये खासियत होती है कि वो आपसे झूठी संवेदना दिखाकर आपके दुःख को बार बार कुरेदेंगे और फिर मजा लेंगे। जैसे मेरे एक रिश्तेदार का घर बन रहा था। छत डालने के लिए सारी बांस बल्लियाँ चढ़ा दी गई थीं कि अचानक ठोंका पीटी के चक्कर में बीच की एक दीवार गिर गई। ये नजारा उनके पड़ोसी ने जो कि अपने छत पर ही खड़े थे बिल्कुल सामने से देखा था। लेकिन उसके बाद फौरन ही वो छत से नीचे उतरकर इनके घर आ गये और मेरे रिश्तेदार को ढूढ़कर पूछने लगे।  "आंय हो भैया अभी बड़ी तेज़ से घमाक की आवाज़ हुई रहा कुछ गिर गया क्या?"  वे मज़ा लेने के लिए ही आये हैं ये बात मेरे रिश्तेदार को भी पता थी इसलिए वे भी उन्हें कोसने का मौका नहीं छोड़ना चाहते थे। लेकिन गुस्से के रचनात्मक इज़हार का तरीका खोजकर वे बोले- "हाँ भैया दीवार गिर गई रहा जो है सो की, लेकिन कुछ सारे (साले) इसमें भी मज़ा ले रहे हैं। आज तो उनके घर में सत्यनारायण की कथा होनी

14 ग़ज़लें

जोर तो सबने लगाया देर तक। हाथ लेकिन कुछ न आया देर तक। एक पल में रूठकर वो चल दिया और फिर मैंने बुलाया देर तक। खोलने वाले ने जहमत की नहीं यूँ तो दरवाजा बजाया देर तक। मैं खड़ा हूँ छू लिया है आपने सोचकर ही मुस्कुराया देर तक शोर से जैसे परिंदे उड़ गये तार सा मैं थरथराया देर तक रूठकर खुद ही तुम्हारी बात से और ख़ुद को ही मनाया देर तक जानता हूँ जो गया आता नहीं हाथ को फिर भी हिलाया देर तक। हो कोई शायद इशारा इस तरफ सोचकर नजरें मिलाया देर तक। (2) उम्मीदों को अपनी जरा सी हवा दें चले आइये फिर ये दीपक बुझा दें। तमन्नायें अठखेलियाँ कर रही हैं इन्हें अपनी बाहों का झूला झुला दें। अगर तू हमें देखकर मुस्करा दे तो खो जायँ तुझमें ही दुनिया भुला दें। निगाहें मिलाकर निगाहों की मदिरा मुझे तू पिला दे तुझे हम पिला दें लिखी हों जहाँ नफरतों की ज़बानें वो मजहब की सारी किताबें जला दें हैं नक्काशियों के कई फूल जिनपर कहो कैसे बूढ़ी  दीवारें गिरा दें कई चाँद सूरज खरीदे हों जिसने उन्हें जुगनुओं की भी कीमत बता दें। वो हरगिज उठाते नहीं फोन लेकिन चलो फिर भी उनका ही नंबर मिला दें। गया ही नहीं जो

उम्मीदें

ऐसी-वैसी कैसी-कैसी उम्मीदें *********************** वैसे तो उम्मीद से होना कोई ग़लत बात नहीं है। क्योंकि बड़े लोगों ने कहा है कि दुनिया उम्मीद पर ही क़ायम है। बेशक ये बात सही है क्योंकि उम्मीद से होने के बाद ही वारिस के आने का रास्ता साफ होता है। लेकिन इस उम्मीद के धरती पर आने के पूर्व भी वे तमाम क्रिया कलाप जो माँ बाप ने करना होता है उसके किये बिना ही अगर कोई उम्मीद से होना चाहे तो फिर उसे क्या कहेंगे? ये सच है कि किसी भी स्वतंत्र देश का कोई भी नागरिक कुछ भी उम्मीद पाल सकता है। ऐसा संविधान में लिखा है। लेकिन उसकी वो उम्मीद पूरी होगी कि नहीं ये कहीं नहीं लिखा।  जनता ने गरीबी हटाओ वाले नारे पर भी सरकार चुनी, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है वाले नारे पर भी, साथ ही अच्छे दिन वालों को भी मौका देकर देख लिया। लेकिन नतीजा हमेशा ही ढाक के तीन पात ही रहा। कुछ विशेष जातियों के ठेकेदार हर चुनावी दंगल में अपने समुदाय के नाम पर मोल-भाव करते हुए सत्ता की चाँदी काटते रहे लेकिन अपने घर में एक कुत्ता घुमाने वाला भी अपनी जाति का नहीं रखा।  ऐसे क्रिया कलापों से ऐसे नेताओं के घर तो विकास की गंगा छप्पर फाड़ कर

सहजीवन में

सहजीवन में बंदर की भूमिका *********************** दीमकें वैसे तो अपना घर मिट्टी के बड़े बड़े टीलों के रूप में ही बनाती हैं फिर भी कुछ बाढ़ वाले इलाकों में ये जलभराव से बचने के लिए अपना घर पेड़ों के तनों पर भी पत्तों को मिट्टी से जोड़कर शाखाओं के नीचे, शाखाओं के टूटने से बने खोह नुमा स्थानों पर या कई ऐसी जगहों पर बनाती हैं जहाँ ये बारिष से बच सकें। चींटे और चींटिया भी अपना आशियाना कुछ ऐसी ही जगहों पर बनाते हैं। कई बार तो ऐसा भी हो जाता है कि दोनों का अपना-अपना घर एक दूसरे से मिला हुआ भी बन जाता है लेकिन इस पर भी दोनों का सहजीवन आराम से चलता रहता है। कोई किसी की दिनचर्या में अनावश्यक ब्यवधान नहीं डालता।  ऐसे ही एक पतला लंबा पेड़ था जिसको बगल में लगे एक मोटे पेड़ की शाखा तिरछे में काट रही थी। जिसके नीचे पानी से बचने के लिए बढ़िया जगह बन रही थी। यह जगह रानी चींटी और रानी दीमक दोनों को पसंद आई और उन्होंने अपने-अपने सैनिकों को काम पर लगा दिया। कुछ ही दिनों में दोनों के अपने-अपने घोसले रहने के लिए तैयार हो गये। घोसले इतने मजबूत बने थे कि बारिष के कई थपेड़े आये लेकिन इनका एक भी बाल बांका न हुआ। दोनों प

ग़ज़ल

जंगल चिड़िया जल की बातें करते हो? छोड़ो भी ये कैसी बातें करते हो? चौड़ी सड़कें ऊँची बिल्डिंग ये देखो महुआ बरगद इनकी बातें करते हो? मेहनतकश के हक की बातें साहेब से अच्छे दिन पर गंदी बातें करते हो? ऐसे थोड़ी डूबे थे तुम दरिया में प्यार मोहब्बत दिल की बातें करते हो? अच्छों में भी वो जो सबसे अच्छी है अच्छा-अच्छा उसकी बातें करते हो? #चित्रगुप्त

जोर लगाके हाइसा

जोर लगाके हाइसा **************** कश्मीर फाइल्स देखी  मैंने  साथ ही पढ़ा भी है गुजरात दंगों पर लिखी कई किताबें भी गोधराकांड में जलकर ख़ाक हुए लोगों के घरों का कोना-कोना भी छानकर आया हूँ  जैसे हर सिक्के का दूसरा पहलू होता है न? या एक षड्यंत्र के पीछे दूसरा षड्यंत्र ठीक वैसे ही है दंगे के पीछे दंगा, दंगे के आगे दंगा बोलो कितना दंगा? सोमनाथ मंदिर, बाबरी मस्जिद,  बामियान की मूर्तियां, अलास्का चर्च अमेरिका के जलते हुए जुड़वा टॉवर ईराक के धुँआ उगलते तेल वाले कुएँ अफगानिस्तान की धू-धू जलती पहाड़ियां सीरिया में उबलते बमों के गोले फिलिस्तीन में कुचली जाती अबोधों की किलकारियां लेबनान की खौफ़नाक गुफाएँ जलते हुए श्रीलंकाई जंगल बर्मा से भागते बूढ़े बच्चे और महिलाओं के हुजूम कितना लिखें क्या नहीं पता है किसको? मेरा शोषण, शोषण तुम्हारा वाला पर्यूषण हाथ मे माचिस है तो चूल्हा जलाना है या किसी का घर ये फैसला अगर मेरा है तो दोष माचिस का तो नहीं हो सकता न? जिनको भी लगता हो कि वो ताकतवर हैं वो ये भी मान लें कि वे निरंकुश भी हैं। जैसे धरती है आसमान है सूरज है चंदा है ठीक वैसे ही कमजोर का शोषण भी है। ये स्थूल सत्य

मतदान

जनता अपना वोट सिर्फ मंदिर और मस्जिद के मुद्दे पर ही नहीं देती वो वोट देती है उन्हें भी जो उनके बच्चों के दाखिले के वक्त चले जाते हैं उनके साथ स्कूल या कालेज तक जनता वोट सिर्फ पाँच किलो राशन पर नहीं देती वो वोट देती है उन्हें भी जो आते-जाते पूछ लेते हैं उनका हाल और कहते हैं कि कोई दिक्कत होगी तो बताना।  जनता वोट मुफ़्त दवाई और मुफ़्त वैक्सीन पर ही नहीं देती वो वोट देती है उन्हें भी जो उनके किसी परिजन के बीमार होने पर कर लेते  हैं एक फोन कॉल और कहते हैं कौनो समस्या आये तो बताना कोई न कोई  रास्ता तो निकलेगा ही। जनता वोट सिर्फ सुशासन और सुव्यवस्था  पर नहीं देती वो वोट देती है उन्हें भी जो उसके ख़िलाफ़ होने वाली हर पुलिसिया कार्यवाही पर खड़े हो जाते हैं थानेदार के सामने एक जिम्मेदार अभिभावक की तरह। जनता वोट बड़े-बड़े नामों को नहीं देती बल्कि वो वोट देती है निरहू और घुरहू समझे जाने वाले छुटभैयों द्वारा बढ़ाये गये उन हाथों को भी जो उनके दरवाजे पर  मुंडन-छेदन विवाह या अन्य कार्यक्रमों में आकर उनका मान बढ़ाते हैं।  जनता वोट बड़े-बड़े दावों वायदों मुफ़्त की चीजों या पाकिस्तान फ़तह कर देने की उम्मीदों पर नहीं

सत्संग

सत्संग ***** "अरे! इतनी रात को कहाँ से आ रहे हो?" लॉन में घूमते हुए वकील साहब ने सामने से गुजर रहे रामबरन से पूछा। "एक महात्मा जी आये हैं उन्हीं का सत्संग चल रहा है बाहुबली पार्क में वहीं से आ रहा हूँ।" सत्संग का नाम सुनते ही वकील साहब की भौंहे तन गईं।  "तुम तो पढ़े लिखे आदमी हो यार कहाँ इन झंडुओं के चक्कर में पड़ते हो? देखा नहीं क्या कि कितने बड़े-बड़े बाबा सलाखों के पीछे हैं। कोई हत्या के आरोप में, कोई बलात्कार के आरोप में, कोई गबन के आरोप में..." वकील साहब बोल ही रहे थे कि सामने से चीखने की आवाजें आने लगीं। इससे पहले कि दोनों कुछ समझ पाते सामने वाले घर का दरवाजा झटके से खुला और एक जोड़ा लड़ते हुए सड़क पर आ गिरा। महिला छुड़ाने की कोशिशें कर रही थी और पुरुष उसका बाल पकड़े अपने पैरों से उसको मार रहा था। सामने दरवाजा पकड़े खड़े दो बच्चे भी जोर जोर से चीख रहे थे।  रामबरन और वकील साहब दोनों ने मिलकर किसी तरह उनको छुड़ाया और मामला शांत कराकर अंदर भेजा। वकील साहब पुलिस भी बुलाना चाहते थे लेकिन महिला के मना करने पर वे मान गए।  वकील साहब से विदा लेते हुए रामबरन ने बस इतना ही

जमूरा

जमूरे! हाँ उस्ताद! "ईवीएम के क्या हाल हैं?" "ये बंगाल के चुनाव में तो ठीक ही थी उस्ताद।" "अभी वाले का बताओ न यार?" "अभी वाले में भी जहाँ भाजपा की जीत  वहाँ की हैक बाकी तो सब ठीकै समझो।" #चित्रगुप्त