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Showing posts from March, 2020

चिट्ठी

प्रिय राहुल गांधी जी सप्रेम देश की व्यथा कथा से तो आप परिचित ही हैं। सत्ता ठीक काम करे इसलिए मजबूत विपक्ष का होना निहायत ही जरूरी है। आपके नाना जवाहर लाल नेहरू को डॉ राममनोहर लोहिया जैसा तगड़ा विरोधी न मिला होता तो शायद उनकी राजनीतिक चमक इतनी न होती। आप परिवारवादी परम्परा से आये हैं ये तो आपके लिए निगेटिव प्वॉइंट है ही साथ ही कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह जैसे नेता भी आपके लिए शकुनि ही साबित हो रहे हैं। इसलिए अगर आप सचमुच राजनीति ही करने आये हैं तो सबसे पहले इनके हाथ जोड़ लीजिये। इन्हें कहिए बहुत कमा लिया अब घर बैठिए। जमीन से जुड़े लोगों से सलाह लीजिये। आपके दाहिने बाएं ऊपर नीचे जितने भी लोग बैठे हैं न वो सब जानबूझकर आपसे ऐसी हरकतें करवाते हैं जिससे आपका मजाक बनता रहे..। आप सीधे आदमी हैं। सच्चे आदमी हैं। आपको तो राजनीति में होना ही नहीं चाहिए था। लेकिन करते भी क्या आप? अब आ ही गये हैं और सीरियस भी हैं तो ऐसी हरकतें छोड़िए। जैसे सिद्धार्थ के बाहर निकलने से पूर्व जिसप्रकार पूरे राज्य को इस प्रकार सजा दिया जाता था कि वे वही देख पाते थे जैसा शुद्दोधन चाहते थे लेकिन उनकी खुश किस्मती थी कि उन्हें

इतना पढ़ने का क्या फायदा

इतना पढ़े लिखे का क्या फायदा है...? ******************************** दो दोस्त बड़े दिन बाद स्टेशन पर मिले हैं। आठवी तक दोनों साथ ही पढ़े थे दूसरा गरीबी की मार से बाप के काम मे हाथ बंटाने लगा यानी स्टेशन पर चना बेचने लगा वहीं पहले वाले जनाब पढ़ते रहे.... जब तक पहले ने दसवीं पास किया तब तक दूसरे ने चने के साथ गोलगप्पे भी बेचना शुरू कर दिया था। जब तक इनका इंटर हुआ तब तक उसने स्टेशन पर ही एक दुकान किराए पर ले लिया था। जब तक इन्होंने ग्रेजुएशन किया तब तक उसने घर बना लिया।  फिर इन्होंने बीएड किया तब तक उसकी शादी हो गई थी।  बीएड के बाद भी जब इन्हें कुछ नहीं मिला तो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे और पिछले दो सालों से वहीं पढ़ा रहे हैं।  तो अब बात मिलने से शुरू करते हैं।  "का कर रहे हो भैया मनोज आज कल...?" दुकान वाले ने पूछा है।  "प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा हूँ और इधर-,उधर कहीं कुछ निकलता है तो भरता भी रहता हूँ।" "हहहहहहह....का फायदा भैया अतने पढ़े लिखे से...? हमें देखो घर परिवार बाल बच्चे सब कर लिया और अबहिन तुम नौकरिए ढूढ रहे हो...."  मास्टर साब उसकी बातों से थोड़ा झेंप स

ग़ज़ल

जंगलों से पेड़ ही जब अलहदे हो जाएंगे। हम परिंदे आसमां के सिरफिरे हो जाएंगे। यूँ तो बच्चे आज कल के बाप के भी हैं नहीं आप गर हंसकर मिलोगे आपके हो जाएंगे। देखकर टीवी मोबाइल फेसबुक और व्हाट्सएप तुम समझते हो कि बच्चे बाप से हो जाएंगे। जुल्फ काली आंख काली उसपे काला तिल भी है इसतरह देखा किये तो बावरे हो जाएंगे। इश्तहारों तख्तियों में हक़ की जो बातें लिखीं सब चुनावी पैंतरे हैं लिजलिजे हो जाएंगे। हाथ जोड़े पाँव में गिरते हैं जो मजलूम से जीत जाने दो इन्हें रणबांकुरे हो जाएंगे। #चित्रगुप्त 

ग़ज़ल

आग ही सबने लगानी है यहाँ। बात अपनी ही मनानी है यहाँ। कौन किसका दर्द आया बांटने फॉर्मेलिटी ही निभानी है यहाँ। क्या मिले जो और ठूँसें जेब में हर किसी की ही कहानी है यहाँ। काम करना जब पड़े नानी मरें बात तो सबने बनानी है यहाँ। आपने चुनकर बिठाया है इन्हें और किसकी हुक्मरानी है यहाँ। चाहते हो गुल मोहब्बत के खिलें नफरतों की बागबानी है यहाँ। जिंदगी इक खेल है बस खेलिये ना कोई राजा न रानी है यहाँ रात भर हिज्जे मिलाया बैठकर शायरी में तब रवानी है यहाँ। #चित्रगुप्त