दो भेंगे ****** किसी राज्य में दो भेंगे थे। जिन्हें सब भेंगा भेंगा कहकर चिढ़ाते थे। वैसे भेंगापन उनका बचपन का दोष नहीं था लेकिन उनकी फितरत ही कुछ ऐसी थी कि किसी ने उन्हें मारकर ऐसा कर दिया था। अब इसे प्रकृति का करामात कहें या मारने वाले कलाकारी कि दोनों में से एक दाहिनी तरफ को भेंगा हुआ और दूसरा बाँयी तरफ... दोनों से ही काम तो कुछ सधता न था इसलिए वे बैठे बैठे बातें बनाते रहते थे। इसपर किसी ने सलाह दे दिया कि जो बैठे बिठाए बातें बनाते रहते हो उसे किसी कागज पर उतार लिया करो तो लेखक बन सकते हो, बस वहीं से इनके लेखक होने की शुरुआत हो गई। वैसे तो उन्हें लेखक होने का 'ल' भी नहीं पता, लेकिन गाँव से संबंध होने के कारण 'ल' से और भी बहुत कुछ जो भी हो सकता है वो सब उन्हें पता था। इसलिए और कुछ आये न आये वे गालियां बहुत बेहतरीन देते थे जिस कारण अधिकतर आम लोग उनसे बचकर ही रहते थे। हालांकि इलाके के लुच्चे और लफंगे लोगों में उनकी ख्याति धर्म में अंधविश्वास की तरह फैल गई थी। 'फालतू पंगे कौन ले?' वाले सिद्धांत पर चलते हुए लोग इनसे बहस न करके 'हाँ में हाँ' मिलाने वाले स