नेता जी का इस्तीफा
नेता जी का इस्तीफा ***************** अहिंसावादी रास्तों के पैरोकार गांधी जी को सुभाष बाबू का गरम रवैया काबिले बर्दास्त न था। साथ ही उनकी लोकप्रियता भी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही थी। साफ तौर पर यह दो विचारधाराओं का टकराव था। बौद्धिक वर्ग में गांधी जी की पैठ अधिक थी पर जमीनी कार्यकर्ताओं में सुभाष बाबू का कोई सानी नहीं था। वो जहाँ जाते लोग उनकी एक झलक पाने को आतुर हो जाते... लोग उनके एक इशारे पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार थे... सुभाष बाबू की इस बढ़ती लोकप्रियता ने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की नींदें हराम कर दीं। वर्चस्व की इस लड़ाई में अंदर ही अंदर सुभाष बाबू को किनारे करने के लिये अंदर ही अंदर चालें चली जाने लगीं। वर्ष था 1939... कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव होना था और गांधी जी किसी भी कीमत पर सुभाषचंद्र बोस को दुबारा अध्यक्ष पद पर नहीं देखना चाहते थे। लेकिन सुभाष बाबू ने चुनाव लड़ने के लिए अपने नाम की घोषणा कर दी । मौलाना अबुल कलाम आजाद ने सुभाष की आंधी के सामने चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया। नेहरू ने भी बुरी शिकस्त की आशंका में चुनाव लड़ने से मुकर गये तब गांधी जी ने आंध्रप्रदेश