बदतमीज बहू
बदतमीज बहू
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"उठो यहाँ से... अरे मैंने कहा उठो"
"मम्मी जी यहाँ खिड़की के पास थोड़ी हवा लग रही है इतना अच्छा लग रहा है बैठने दो न प्लीज...?"
"नहीं मैंने कहा उठो यहाँ से..."
बहू को ससुराल आये हुए अभी दूसरा दिन ही था और सास अपनी सहेलियों के साथ बैठी बातें करते हुए उसपर हुकुम चला रही थी।
बहू वहाँ से उठकर कमरे में चली गई तो थोड़ी देर में ही सास की आवाज फिर गूंजी।
"पंखा कितना तेज़ चला दिया तुमने पूरे घर में आवाज जा रही है। इसको धीमा करो!"
सास के आदेशों का पुनः अनुपालन हुआ और बहू ने पंखा धीमा कर दिया फिर मोबाइल देखने लगी।
सास ने इधर उधर करते हुए एक नज़र बहू के कमरे में दौड़ाई और फिर वहां जाकर भी बोलने लगीं।
"मैंने कहा उठो... रखो मोबाइल... दिन भर यही देखोगी तो होने वाले बच्चे क्या सीखेंगे?"
बात अब बहू के बर्दास्त से बाहर हो गई थी।
"देख बुढ़िया मैं कोई रोबोट नहीं हूँ जो तेरे रिमोट के इशारों पर उठूँ बैठूं ... गला दबा दूंगी तो मर जाओगी अगर ज्यादा टिर्र टिर्र करोगी तो...."
"ये तो बड़ी बदतमीज है।" बाहर बैठी सहेलियों में से एक दूसरे से कह रही थी।
#चित्रगुप्त
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