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कविताएं

रावण ****** "रावण तुम फिर आ गये न मरने?" "हर साल आते हो" "इस साल भी आ गये" "और अगले साल भी आओगे" "फिर उसके अगले साल भी" "और फिर उसके भी अगले साल" "यानी आते ही रहोगे" पर सुनो- वो गरीबी जो दर-दर मुंह बाये खड़ी है कभी उसे भी लेकर आओ और खड़ा करो अपने बगल में... वैमनस्यता! "जो फैल रही है जन जन के भीतर" "कभी उसे भी खड़ा करो" "राम की तीर के आगे" "और कहो कि मारो इसे भी" छद्म धर्मध्वजा वाहक झूठे, पाखंडी, हरामखोर, मक्कार, बातंकवादी छली, कपटी, धूर्त, कामी, हरामी, तलवे चट्ट,  आदमियों के गिरगिटावतार मूर्धन्यों के लकड़बग्घे वहशियों के बहसी वहशतों के दरोगा "इतने घूम रहे हैं" "छुट्टे सांड़ों की तरह" "कभी इन्हें भी तो उतारो" "रामादल के आगे" फिर लगाओ नारा- "आनंदकंद दशरथ चंद्र सियावर राम चन्द्र की ....जय" "और जला डालो इन्हें भी" "अपने साथ..." क्योंकि मेरी जी एस टी के हिसाब से- "तुम्हारे जलने