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वीथियों के बीच

"हमें उतार दिया जिंदगी ने बीच सफर हमारे पास यहीं तक का ही किराया था"  ******************************** शेर ऐसा ही होता है वो जब दहाड़ता है तो सारा जंगल मूक कोलाहल से भर जाता है।  आदमजात के जीवन का सोलहवां वसंत आते आते उसके अंदर एक लयात्मकता जन्म लेने ही लगती है। यह वो समय होता है जब जिंदगी का शुरूर चढ़ना शुरू होता है। यह समय जीवन में रंगीन सपने देखने का होता है।  इसी समय उसके अंदर की कोमलता काव्यात्मक होने लगती है। जीवन के इस मोड़ पर शायद ही कोई ऐसा हो जिसने  तुकबंदियां न की हो या कुछ न कुछ काव्यात्मक न लिखा हो। उन्हीं में से कुछ विशिष्ट प्रकार के जीवों को कविताएं पकड़े रह जाती हैं, तो वे आजन्म कुछ न कुछ लिखते रहते हैं। कुछ सोलह के बाद दो चार साल में कविता से अपना पीछा छुड़ा लेते हैं। कुछ की कविताई बीवी जान के चप्पलों और जूतों की खातिरदारी के बाद छूटती है। कुछ बड़े ढीठ प्रकृति के होते हैं जो जीवन की किसी भी परिस्थिति में लिखना नहीं छोड़ते ये इस प्रकार के जीव होते हैं जो चाहते हैं कि दुनिया उनके कहे के हिसाब से चले। लयात्मक अभिव्यक्ति की अलग अलग विधाएं हैं उन्हीं से एक का नाम