समीक्षा : फत्ते-पुराण
फत्ते-पुराण : सरल व्यंग्यकार की गहरी चोट ___________________________ चित्रगुप्त जी का व्यंग्य-संग्रह 'फत्ते-पुराण' पढ़े एक सप्ताह से अधिक हो गया था पर जीवन के झंझावात व्यक्ति को सदैव मन का कब करने देते हैं। आज जब कुछ अवसर मिला तब 'फत्ते-पुराण' फिर याद आया। 'फत्ते-पुराण' चित्रगुप्त जी की शायद सातवीं पुस्तक है। वे मूलतः व्यंग्यकार ही हैं। हालांकि उन्होंने 'नैहर' और 'दो रुपया' जैसी अति संवेदनशील कहानियाँ भी लिखी हैं जिन्हें पढ़कर पाठक के सिर्फ आँसू नहीं निकलते, वह फफककर रो पड़ता है। इस तरह गंभीर भावभूमि पर भी चित्रगुप्त जी की तमाम कहानियाँ, लघुकथाएँ हैं लेकिन जब आप इनके समग्र लेखन पर दृष्टि निक्षेपित करेंगे तब आप भी वही कहेंगे जो मैं कह रहा हूँ। सात पुस्तकों में से चार सिर्फ व्यंग्य पर ही हैं। वे चाहे गद्य लिखें या पद्य उसमें व्यंग्य आ ही जाता है। आलोच्य पुस्तक 'फत्ते-पुराण' छोटे-छोटे व्यंग्य-लेखों का संग्रह है। व्यंग्य में जबसे हास्य आया है,व्यंग्य की धार थोड़ी कुन्द हुई है। व्यंग्य को मनोरंजन का साधन नहीं बनाना चाहिए। अगर आप सधे व्यंग्यका