''जमूरे!'' "बको उस्ताद!" " ये जो ईमान के नाम पर कुछ बेईमान लोग हवाओं में बारूद घोलते हैं। धरती को लाल करते हैं। मासूमों को जन्नत का ख़्वाब दिखाकर बरगलाते हैं और फिर तरह तरह की भसड़ मचाते हैं। क्या सचमुच ये क़यामत के रोज़ (या जिसके मज़हब में जो हो...) जन्नत के अधिकारी होंगे?" " रुको रुको उस्ताद! ईमान के नाम पर ही नहीं, धर्म के नाम पर, मज़हब के नाम पर, पैगम्बर के नाम पर, अवतार के नाम पर, थोथे गप्पों के नाम पर, आसमानी किताबों के नाम पर, टोपी के नाम पर, टीके के नाम पर, बुर्के के नाम पर, बिकनी के नाम पर, बकरों के नाम पर गाय के नाम पर, नाम तो नाम कभी- कभी बेनाम पर, ये तो भसड़ मचाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते। " "बाकी तो सब ठीक है जमूरे लेकिन मेरा सवाल का जवाब तो दो... कि ये सब जो जन्नत (सब अपनी-अपनी भाषा और मज़हब के हिसाब से समझ लें) दिलवाने के नाम पर थोक भाव में चल रहा है तो ऐसा करने वालों को जन्नत मिलेगी क्या?" "क्या बात करते हो उस्ताद इसी मानसिकता के साथ अगर इन्हें जन्नत मिल भी गई तो ये उसे भी दो दिन में 'जहन्नुम