नशा मुक्ति
नशामुक्ति ********* सफर लंबा हो और दिन भी ढलने वाला हो ऊपर से मजबूरी ऐसी की चलना भी अनिवार्य हो ऐसी हालत में खड़े मुसाफिर की सी दशा लिए खड़ी रेवती जैसे धरती फटने के इंतजार में हो कि वो उसी में समा जाये। पर हर किसी के किस्मत में सीता हो जाना कहाँ लिखा होता है? "कब से मना कर रहे थे कि मत पियो मत पियो पर मानें तब न....? भर गया न मन अब पीना आराम से ऊपर जाकर... कम से कम इन छोटे छोटे बच्चों और बीवी के बारे में तो सोचना था।" बाहर ओसारे में बैठा बूढ़ा ससुर भी सुबह से ही बड़बड़ कर रहा था सामने सरजू चुपचाप चारपाई पर लेटा था। डॉक्टर ने अस्पताल से यह कहकर छुट्टी कर दी थी कि ले जाओ सेवा पानी करो अब फालतू इलाज कराने और पैसा फूंकने का कोई मतलब नहीं है। अब या तो बड़े अस्पताल ले जाकर इनकी किडनी बदली कराओ या घर ले जाओ। इनका इलाज हो पाना अब संभव नहीं है। उसकी दोनों किडनियां काम करना लगभग बंद कर चुकी थीं। बड़े अस्पताल तक पहुंच पाने की उनकी हैसियत न थी। मजबूरी में आखिरी विकल्प घर ले जाना ही बचा था। बूढ़े बाप का या उसकी बीवी का वश चलता तो वह खुद को भी बेच देते पर सरजू का इलाज कराते लेकिन गरीब की चमड़ी