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Showing posts from February, 2021

हे ठग तेरे कितने रूप

हे ठग तेरे कितने रूप ****************** घटना हाल फिलहाल की ही है जिसकी जानकारी मुझे कल मिली... निशा ने फेसबुक पर दिख रहे किसी एड को देखकर सूट आर्डर किया था पर उसे डिलीवरी में साड़ी मिली वो भी बिल्कुल पुरानी। थोड़ी देर इधर उधर करने के बाद उसने साड़ी के साथ आये बिल को देखा तो उसमें कंपनी का फोन नंबर लिखा हुआ था।  उसने काल किया। काल रिसीव हुआ और उधर से सामान की गलत डिलीवरी के लिए खेद भी प्रकट किया गया। कंप्लेंट लिखकर फॉरवर्ड करने के लिए ऑपरेटर द्वारा उससे मोबाइल पर आई ओ टी पी मांगी गई जो उसने सहज ही दे दिया। ओ टी पी मिलते ही फोन कट गया। उसके बाद उसके नंबर पर दो तीन रिपीट मैसेज आये जो कि पैसे कटने के थे।  मिनटों में ही खाते की जमा राशि साफ हो गई। ऑन लाइन ठगों का शायद ये नया ट्रेंड है, कि गलत सामान की डिलिबरी पर उपभोक्ता का फोन तो आएगा ही? और ऐसे में कंप्लेंट लिखने के नाम पर कोई ओ टी पी देने में भी ज्यादा दिमाग नहीं लगाएगा। तो सावधान रहें! ओ टी पी और को तो छोड़ो अपने बाप को भी न बताएं। चित्रगुप्त

समीक्षा

छोटी किंतु असाधारण कहानियों का संग्रह ********************************* (जो कि लेखक की लेखकीय गुटबाजियों में शामिल न होने के कारण आम पाठक तक पहुंची ही नहीं है।) जैसा कि लेखक ने स्वयं ही कहा है- " यह कहानियाँ रेगिस्तान के उन दरख़्तों की तरह हैं जो बिना खाद -पानी और देखरेख के ख़ुद-ब-ख़ुद उग आते हैं और दुनिया को अपने अस्तित्व से रूबरू करवाने के साथ-साथ विकट धूप में किसी थके हारे मुसाफ़िर को अपनी छाँव से कुछ पल को ही सही सुकून का अहसास दिलाते हैं। ऐसे में हमें पूरी उम्मीद है कि इस संग्रह की कहानियाँ आपके मर्म को ज़रूर छुएं गई सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक को तीर देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर ये दोहा लिखा तो बिहारी सतसई के लिए गया था, लेकिन ये क्यों लिखा गया होगा इसका अहसास 'मंटो कहाँ है' को पढ़ते हुए ही हुआ। इसका कारण शायद यह हो कि बचपन से ही बिहारी को इतना पढ़ा और सुना कि समझदारी आते आते उसकी रोचकता जाती रही... बेहतरीन कथ्य और शिल्प से सुसज्जित यह पुस्तक कुल 70 छोटी कहानियों का संग्रह है। जिन्हें पढ़कर आप रो सकते हैं, हँस सकते हैं, खीझ से भर सकते हैं, या कुछ भी हो सकते हैं

समीक्षा

पुस्तक - गांधी के राम लेखक - डॉ अरुण प्रकाश प्रकाशन- किताब वाले मूल्य - 300/- पृष्ठ - 87 वो राम जो शीलवान हैं, धैर्यवान हैं, मर्यादापुरुषोत्तम हैं और वीर भी हैं। वही राम  जन मन के हैं और वही राम जन जन के भी... 'वही राम गांधी के राम हैं।'  राममय गांधी कहूँ या गाँधीमय राम दोनों की शक्ति इतनी विशाल है कि इसे तोड़ पाने में बड़ी बड़ी शक्तियां विफल हो जाएं। लेकिन एक तरीका था कि दोनों को अलग कर दिया जाय। इसके लिए राम को सांप्रदायिकता का चोला पहनाया गया। उसके बाद गांधी के 'रघुपति राघव राजा राम' को हल्का करके 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' को बोल्ड कर दिया गया। बिना ये सोचे समझे कि मुखड़े की पहली अर्धाली के बिना अंतरों को कितना भी सजा लिया जाय गीत कभी मुकम्मल नहीं हो सकता? लेकिन नहीं... गांधी को रामहीन करके राम को भी गांधी हीन कर दिया गया।  एक धड़े ने रामहीन गांधी को पकड़ लिया और दूसरे धड़े ने गांधीहीन राम को । उसके बाद दोनों अपनी अपनी राजनीति को चमकाने में लग गये। इस दुर्घटना का खामियाजा ये हुआ कि न तो गांधी ही जन जन के रहे और न राम ही।  दिन भर गांधी वादियों के हिंसक कारनामे देखिए या

पांच लघुकथाएं

हरामी आदमी ************ आज सुबह से ही मेरे पड़ोसी द्वारका जी ने खटर पटर मचा रखी थी। वैसे वो रोज बड़े आराम से उठते थे, पर आज शायद कहीं जाना हो इसलिए सुबह जल्दी ही उठकर गाय भैसों का काम निपटा रहे थे...  वैसे वो गांव के ही प्राइमरी स्कूल में सरकारी अध्यापक हैं। पर मैं जबसे उन्हें जानता हूँ विद्यालय जाना उनके लिए एक फालतू का ही काम है। जब मन होता है चले जाते हैं और फिर जब मन होता है वापस आ जाते हैं। सुबह आराम से उठकर वे पहले जानवरों को निपटाते हैं। भैसों का दूध निकालते हैं उसे दूध वाले को देते हैं। कोई खेती किसानी का काम हुआ तो उसे भी करते हैं फिर सब कुछ निपटाकर जब आराम करना होता है स्कूल चले जाते हैं। स्कूल जाने का समय उनके लिए कोई ख़ास मायने नहीं रखता जब घर का काम समाप्त हुआ चले गये। बीच में भी कोई काम पड़ा या कोई रिश्तेदार ही आ गया और घर से कोई फोन गया तो वापस आ जाते हैं। जब फोन की सुविधा नहीं थी तो उन्हें किसी को बुलाने भेजना पड़ता था। जब कोई उपलब्ध नहीं होता था तो ये शुभ काम मास्ट्राइन को ही करती थीं, पर जबसे फोन की सुविधा हुई है? मास्ट्राइन का काम आसान हो गया है। अब वो बैठे बैठे फोन घुमा

मजदूर मरा है

मजदूर मरा है... ************* बारात विदाई की सारी तैयारियां हो चुकी थी। हॉल के बाहर कारें पंक्ति बद्ध खड़ी थीं। गाने बजाने के सारे इंस्ट्रूमेंट अब तक बंद हो चुके थे। प्रोग्राम ऑर्गनाइजर काम को जल्दी निपटाने के चक्कर में मेहमानों के पीछे पीछे घूम रहे थे, कि अचानक चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। अगले ही पल इस बात का भी खुलासा हो गया कि किसी को करंट लग गया है। सब अपने अपने अजीजों की टोह लेने लगे। मंटू कहाँ है मंटू? अच्छा अच्छा वो वहाँ है। किसी ने आवाज लगाया ऋषि..! अच्छा वो भी सुरक्षित है।  शादी का खुशनुमा माहौल देखते ही देखते अफरातफरी में बदल गया युवक इधर से उधर दौड़ने लगे, बिजुर्गवार अपनों को आवाज लगाने लगे महिलाएं रोने चिल्लाने लगीं.. भागमभाग के इस माहौल में मैनेजर आकर सूचना दी कि परेशानी की कोई बात नहीं है। 'मजदूर था!' 'अच्छा मजदूर था!' 'अच्छा अच्छा मजदूर था!' 'अच्छा अच्छा बिजली का काम करने वाला था मर गया बेचारा...' 'चलो चलो अपना काम करो मजदूर था!' 'अच्छा अच्छा मजदूर था।' #चित्रगुप्त

छोटी बच्ची और रिक्शेवाला

छोटी बच्ची और रिक्शेवाला ********************** जून की चिलचिलाती हुई धूप और दिल्ली की गर्मी, सड़क को देखने पर ऐसा लगता जैसे चिंगारियां निकल रही हों...। आनंद विहार गुरु द्वारे के सामने फुट पाथ पर लगे पेड़ के नीचे अभी चलकर आया एक रिक्शेवाला बैठकर एक गत्ते के से हवा कर रहा था कि सामने से एक महिला आई और बोली- " महाबली पार्क तक चलोगे भैया ?" "जरूर चलूंगा मैडम पर पचास रुपये लगेंगे।" "क्या बोल रहा है लूट मची है क्या बीस रुपये तो लगते हैं वहां के...?" "इतनी धूप है मैडम जाना है तो पचास ही लगेंगे नहीं तो और देख लो..!" "कितना बदतमीज आदमी है हरामी कहीं का हुंह!" महिला की इन बातों का रिक्शे वाले ने कोई उत्तर न दिया और बैठा चुपचाप गत्ते के टुकड़े से हवा करता रहा। वह महिला वहीं खड़ी होकर आस पास देखने लगी पर वहाँ कोई अन्य रिक्शाचालक भी दिखाई नहीं दे रहा था। उसे थोड़ी देर में ही कोई रिक्शा या ऑटो रिक्शा मिल जाने की उम्मीद थी लेकिन जब काफी इंतज़ार कर लेने के बाद भी कोई न मिला तो वह फिर वापस होकर उस रिक्शेवाले के पास गई और पचास का नोट दिखाते हुए बड़ी अकड़ के साथ

सूक्तियां

वर्तमान ******* (१) बिना सीखे आप साइकिल की पंचर तक नहीं बना सकते हैं लेकिन किसी भी राजनीतिक मुद्दे पर लंबी-लंबी छोड़ सकते हैं।  (२) कौन किस मुद्दे का समर्थन या विरोध करेगा इसके लिए ये बिल्कुल ही गैर जरूरी है कि वो हितकर है या अहितकर देखने वाली बात सिर्फ ये है कि वो किस धड़े का है। (३) पत्नियां पति से, सास बहू से, कर्मचारी अधिकारी से और जनता सरकार से हमेशा नाराज ही रहती है। (४)  पुलिस नेता और कुत्ता ये ऐसे जीव हैं जिसे कोई भी गाली दे सकता है।  (५) सरकार समर्थक और पति ये दोनों ऐसे सर्वनाम हैं जिन्हें हमेशा तुच्छ नजरों से ही देखा जाता है।  (६) गरीब, दलित और महिला हमेशा प्रताड़ित ही होती है।  (७) भक्त और मोदी का आपस में वही संबंध है जो एडविना आंटी का चाचा नेहरू से।  सब अच्छा है बरगद में पर एक बुराई तो है ही कि वो अपने नीचे दूसरे को पनपने नहीं देता (८) दवाएं डालिये निराई करिए गुड़ाई करिए पर खर पतवार कभी समाप्त नहीं होंगे (९) 'है' और 'नहीं है' के  दिमागी उठक बैठक के बीच 'भगवान' किसी चूल्हे पर चढ़ी हुई वह खाली ह

मुक्तक

अगर विष घोलना ही है तो फिर शुभ काम कैसा है मिले बदनामियों से जो फकत वो नाम कैसा है। अमन को खा रहा जो रोज नफ़रत की सियासत से हमारे 'राम' ने पूछा है इनका 'राम' कैसा है?

कविता (चिड़िया की कैद)

चिड़िया की कैद ************* एक चिड़िया जो लोहे के सीखचों में बंद थी। सीखचे पुराने हो गए थे। चिड़िया को कैद से नफ़रत थी और लोगों को उस पिंजरे से सत्ता बदली तो उसे चिड़िया की हालत पर बहुत दुःख हुआ दुःख होना सत्ता का नैसर्गिक गुण जो है। नई सरकार ने उसके लोहे के सीखचों पर तांबे और पीतल की परत चढ़वा दी लोगों का क्या वो खुश हो गए! खुश तो वो शराब पीकर भी हो जाते हैं! या कभी कभी भांग खाकर भी... मगर चिड़िया को तो कैद से नफरत थी! वह रोती रही और इतना रोई? कि अगर किसी टी वी के रियलिटी शो में होती तो जीत ही जाती मगर जिंदगी के शो में आंसुओं की कीमत सिर्फ नेताओं की होती है। गरीब को तो आँसू भी पसीने के रास्ते निकालना पड़ता है। थोड़े दिन बाद फिर नई सरकार आई उसने भी चिड़िया के दुःख पर दुःख जताया और चांदी का पिंजरा बनवा दिया फिर उसके बाद की सरकार ने सोने का पिंजरा सरकारें आती रहीं जाती रहीं पिंजरे का रखरखाव मरम्मत और बदलाव होता रहा भित्ति चित्र तक बना दिए गए नई पुरानी पेंटिग्स लगा दी गईं मगर चिड़िया अब भी दुःखी थी नौकरशाहों ने नेताओं को समझा दिया था कि दुःखी रहना ही चिड़िया की नियति है! 'चिड़िया अब भी कैद में है

सीनियर/जूनियर

सीनियर/जूनियर ************** नवलेखक ने बहुत डरते हुए वरिष्ठ लेखक के घर की कॉल बेल बजाई थी लेकिन वरिष्ठ के अपनेपन और सहृदयता ने पहली मुलाकात में ही उसका मन जीत लिया। उसके बाद लंबी वार्ता हुई।  पर्यावरण से लेकर दहेज तक लगभग हर सामाजिक सरोकार के विषय उनकी वार्ता का केंद्र रहे... वरिष्ठ ने बताया कि नवलेखकों का कम अध्ययनशील होना आज के इस छिछले साहित्यिक दौर का प्रमुख कारक है। लगभग दो घंटे तक चली मुलाकात के बाद नवलेखक ने अपनी हालिया प्रकाशित पुस्तक उन्हें भेंट की दोनों ने साथ में सेल्फी लिया उसके बाद बैठक का समापन हुआ।  स्टेशन पर पहुचने के बाद नवलेखक को याद आया कि वह अपना 'टेबलेट' तो वहीं भूल आया है। जिसे लेने के लिए उसे वापस उनके घर जाना पड़ा।  टेबलेट लेकर जब वह लौट रहा था तो उसने देखा कि सामने कूड़े वाला ठेला लेकर जा रहा था। कूड़े के ढेर में सबसे ऊपर उसी की किताब अस्त व्यस्त अवस्था में पड़ी थी।  नवलेखक को वरिष्ठ की बताई हुई कम अध्ययन वाली बात का मतलब अब समझ आया था।  #चित्रगुप्त