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ग़ज़ल

उल्फतों का हर फ़साना यूँ भटककर रह गया। हाथियां लाये बचाकर दुम अटककर रह गया।  बीच में पत्थर फंसाकर फेंकना तब फेंकना ख़त तुम्हारा पेड़ पर आया लटककर रह गया लोग तो आते रहे जाते रहे कुछ ग़म नहीं फासला बस आपका मुझको खटककर रह गया। था बहुत मगरूर जो उस ओर  देखा ही नहीं वो भी अपने गाल पर जुल्फें झटककर रह गया। हाथ मलता रह गया मैं भी उन्हें बस देखकर पाँव  मुझको देखकर वो भी पटककर रह गया। हक़ किसी मज़लूम का बस रास्ते का आम था जब जिसे मौका मिला वो ही गटककर रह गया। सर्व हारा बुर्जुआ सब एक थे इस खेल में मसनदों पर जो गया उससे चिपककर रह गया। #चित्रगुप्त