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जमूरा मदारी और रिसर्च

जमूरा, मदारी और रिसर्च  ******************* "बड़ी लंबी चौड़ी पोथी लेकर घूम रहा है जमूरे... आखिर ऐसा क्या इसमें...?" "ये रिसर्च पेपर है उस्ताद..." "कौन सा रिसर्च पेपर..." "उस्ताद शायद आपने सुना हो कि आनिवांशिकी के जन्मदाता ग्रेगर जॉन मेंडल ने एक सिद्धांत दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि 'वैज्ञानिक का बेटा वैज्ञानिक, डॉक्टर का बेटा डॉक्टर या इंजीनियर का बेटा इंजीनियर नहीं हो सकता।" "हाँ सुना तो है और ये बात सही भी है।" "बस यहीं गच्चा खा गये उस्ताद, कर दी न बेवकूफों वाली बात? मैं इसी पर रिसर्च करके आ रहा हूँ।" "तो क्या निकला तुम्हारे रिसर्च में..." "मेरे रिसर्च में निकला है कि 'वैज्ञानिक का बेटा वैज्ञानिक, डॉक्टर का बेटा डॉक्टर या इंजीनियर का बेटा इंजीनियर हो या न हो पर नेता का बेटा नेता ही होगा, यह अकाट्य सत्य है।" #चित्रगुप्त 

मदारी जमूरा और गर्व

''जमूरे'' ''हाँ उस्ताद!'' ''उनके पास शिक्षा है, रोजगार है, स्वास्थ्य है, सुरक्षा है। क्या है तुम्हारे पास?'' "मेरे पास 'गर्व' है उस्ताद!" "लेकिन किस बात का गर्व?'' "मुझे किसी बात का 'गर्व' नहीं होने का ही तो 'गर्व' है उस्ताद..."

ग़ज़ल

चाहना ही है अगर यूँ चाहिए तो बात हो ख़्वाब में कुछ चांद तारे लाइए तो बात हो। आपने अपनी चलाई तो गये सर से मियाँ मन मुआफ़िक राग उनके गाइए तो बात हो । हम भी आ जाएंगे अपने ज़ख्म सारे खोलकर आप भी शमशीर लेकर आइए तो बात हो। हक बयानी मैं ही कब तक यूँ करूंगा आपकी आप भी हक़ में मेरे फरमाइए तो बात हो। काम अटकेगा नहीं तो और क्या होगा भला भोग ऊपर दीजिए फिर खाइए तो बात हो।

पहचान

पहचान ******* "हेलो भाई साहब आपने सामान भेजा था वो तो मिला नहीं... किसके हाथ में भेजा था?" "तिवारी सर को दिया था उनसे पूछना..." "कौन से तिवारी सर भाई यहाँ तिवारी भी तो बहुत हैं?" "अरे वही सुअर खाने वाले..." "Ok" # चित्रगुप्त

असभ्य बच्चा

असभ्य बच्चा *********** बच्चे रोते ही हैं।  सब बच्चे रोते हैं।  बच्चों को रोना भी चाहिए!  वैसे रोना तो बड़ों को भी चाहिए।  रोते भी हैं। पर दिखता नहीं है। आज मैंने तीन बच्चों को देखा  तीनो रो रहे थे।  पहला अच्छे कपड़ों के लिए रो रहा था।  दूसरा खिलौने के लिए रो रहा था  और तीसरा  'रोटी के लिए...'  मुझे लग रहा है ये जो तीसरा बच्चा रोटी के लिए रो रहा है। यही हमें सभ्य नहीं होने दे रहा...। #चित्रगुप्त  

अकविता

मुहब्बत की आख़िरी बूँद के सूखने तक ये पेड़ हरे रहेंगे ये धरती जिंदा रहेगी और मानवता को कोसने के उन्मादी दौर में भी कविताएं लिखी और पढ़ी जाती रहेंगी