सहजीवन में

सहजीवन में बंदर की भूमिका
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दीमकें वैसे तो अपना घर मिट्टी के बड़े बड़े टीलों के रूप में ही बनाती हैं फिर भी कुछ बाढ़ वाले इलाकों में ये जलभराव से बचने के लिए अपना घर पेड़ों के तनों पर भी पत्तों को मिट्टी से जोड़कर शाखाओं के नीचे, शाखाओं के टूटने से बने खोह नुमा स्थानों पर या कई ऐसी जगहों पर बनाती हैं जहाँ ये बारिष से बच सकें। चींटे और चींटिया भी अपना आशियाना कुछ ऐसी ही जगहों पर बनाते हैं। कई बार तो ऐसा भी हो जाता है कि दोनों का अपना-अपना घर एक दूसरे से मिला हुआ भी बन जाता है लेकिन इस पर भी दोनों का सहजीवन आराम से चलता रहता है। कोई किसी की दिनचर्या में अनावश्यक ब्यवधान नहीं डालता। 

ऐसे ही एक पतला लंबा पेड़ था जिसको बगल में लगे एक मोटे पेड़ की शाखा तिरछे में काट रही थी। जिसके नीचे पानी से बचने के लिए बढ़िया जगह बन रही थी। यह जगह रानी चींटी और रानी दीमक दोनों को पसंद आई और उन्होंने अपने-अपने सैनिकों को काम पर लगा दिया। कुछ ही दिनों में दोनों के अपने-अपने घोसले रहने के लिए तैयार हो गये। घोसले इतने मजबूत बने थे कि बारिष के कई थपेड़े आये लेकिन इनका एक भी बाल बांका न हुआ। दोनों प्रजातियां आराम से पतले वाले पेड़ से लेकर मोटे वाले पेड़ तक आराम से विचरण करतीं लेकिन उनमें कभी आपसी मनमुटाव या लड़ाई झगड़ा देखने को नहीं मिलता था। आते जाते दोनों कई बार मिलते भी तो मूछों के बाल हिलाकर एक दूसरे का अभिवादन करते और अपने काम की ओर चले जाते थे। जंगल में सहजीवन की ऐसी मिसाल बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती थी। 

फिर एक दिन बंदरों का एक झुंड आया और उसी में से एक बंदर ने पतले वाले पेड़ को पकड़कर जोर से हिला दिया। जिससे दोनों के घोसले बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गये। फिर क्या था चीटियां सजग हो गईं और रानी चींटी के आदेश पर तुरंत ही धावा बोल दिया गया। देखते ही देखते हजारों की संख्या में दीमकों का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। इस क्रियाकलाप में बहुत सारी चीटियां भी नीचे गिरीं और कीचड़ में फंसकर अपनी जान को गँवा बैठीं। यह सिलसिला देर रात तक चला फिर धीरे-धीरे सब शांत हो गया।

अगली सुबह ऐसे हुई जैसे कुछ हुआ ही न हो फिर सब कुछ सामान्य...। दोनों ही प्रजातियों में से कुछ सैनिक टूटे हुए घोसले की मरम्मत में लगे और बाकी दाना पानी के इंतजाम  में जुट गये।

घटनास्थल से थोड़ी ही दूरी पर एक तोता भी सपरिवार रहता था। इसकी तोती इस घटना को बहुत बारीकी से देख रही थी। दूसरे दिन सबकुछ सामान्य देखकर उसने तोते से पूछा- "ए जी एक बात बताइये इन चींटियों और दीमकों का जीवन कल वाली घटना को भुलाकर क्या ऐसे ही सामान्य होकर चलता रहेगा।"

तोती की बात को सुनकर तोते ने पंजों से अपनी गर्दन खुजलाते हुए उत्तर दिया- "चलता ही रहेगा भाग्यवान जब तक कि कोई बंदर फिर से आकर पेड़ को हिला नहीं देता है।"

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