लगेगी आग तो
लगेगी आग तो
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"चाचा! राम समुझ के घर में आग लगी है पूरा गाँव आग बुझाने जा रहा है, आप नहीं चल रहे क्या?" राम बरन ने खैनी मलते हुए बिगहा भर मुस्कान बिखेरी।
ईर्ष्या रखने वालों की ये खासियत होती है कि वो आपसे झूठी संवेदना दिखाकर आपके दुःख को बार बार कुरेदेंगे और फिर मजा लेंगे। जैसे मेरे एक रिश्तेदार का घर बन रहा था। छत डालने के लिए सारी बांस बल्लियाँ चढ़ा दी गई थीं कि अचानक ठोंका पीटी के चक्कर में बीच की एक दीवार गिर गई। ये नजारा उनके पड़ोसी ने जो कि अपने छत पर ही खड़े थे बिल्कुल सामने से देखा था। लेकिन उसके बाद फौरन ही वो छत से नीचे उतरकर इनके घर आ गये और मेरे रिश्तेदार को ढूढ़कर पूछने लगे।
"आंय हो भैया अभी बड़ी तेज़ से घमाक की आवाज़ हुई रहा कुछ गिर गया क्या?"
वे मज़ा लेने के लिए ही आये हैं ये बात मेरे रिश्तेदार को भी पता थी इसलिए वे भी उन्हें कोसने का मौका नहीं छोड़ना चाहते थे। लेकिन गुस्से के रचनात्मक इज़हार का तरीका खोजकर वे बोले-
"हाँ भैया दीवार गिर गई रहा जो है सो की, लेकिन कुछ सारे (साले) इसमें भी मज़ा ले रहे हैं। आज तो उनके घर में सत्यनारायण की कथा होनी पक्का समझो। कुछ ने तो घी के दीये दिन में ही बार(जला) दिए हैं।"
उसके बाद तो उनके घर का हर सदस्य मेरे रिश्तेदार के परिवार के अपने समकक्ष से मिलकर उनके जले पर नमक छिड़कने आया और बदले में परोक्ष गालियां खाकर गया। देर शाम तक कारीगर और मजदूर तो अपने कामों में व्यस्त रहे और दोनों पड़ोसी आपस में ईर्ष्या-ईर्ष्या खेलते रहे।
घर रामसमुझ का जल रहा था जो कि रामबरन और उनके चाचा का पुराना पड़ोसी था। इसलिए कायदे से रामबरन ने पहले चाचा से मिलकर अपनी ईर्ष्या की तृप्ति करने में भलाई समझी।
"बरै दो ससुर का घर वो खुद भी परिवार सहित भस्म हो जाय तो मेरा क्या?... और बोलो इस बिन्नू परधान को वोट दे। ई बिंनुआ तो खानदानी पनौती है। इसका बाप जब प्रधान बना था तब भी गांव में हैजा फैला था। फिर इसकी माँ बनी तो बाढ़ आई और अब ये बना है तो पूरा गांव ही जलवायेगा।"
"लेकिन चाचा परधान का किसी के घर आग लगने से क्या वास्ता? किसी ने बीड़ी पीकर तीली फेंक दी होगी।"
"वास्ता ऐसे कैसे नहीं है? आख़िर वो गाँव का प्रधान है। उसकी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है।"
बाहर चल रहे चुहल को सुनकर चाची भीतर से गुर्राईं-
"दस बज गया है और अब तक ई मैदान निपटने नही गये हैं वहीं चौकी पर बैठे-बैठे काँख रहे हैं और ये अकल बता रहे हैं दूसरों को... तीन बार लोटा भर-भर कर पानी रख चुकी हूं। कुत्ता आता है पीकर चला जाता है लेकिन ये बीर उठे नहीं हैं। जलता है किसी का घर तो जल जाए ये पहले विधान सभा में बिल पास करवाएंगे फिर बाल्टी लेकर पानी डालने जाएंगे।"
"हाँ हाँ मैदान निपटने मैं नहीं जा रहा हूँ और पेट दर्द इनको हो रहा है। ई देखो कलजुग...!"
"हम का देखें तुम देखो आखिर उस परधनवा ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो उसे कोस रहे हो?" चाची ने दाँत पीसते हुए अपना पल्लू कमर में खोंसा और लड़ने की मुद्रा में आकर खड़ी हो गईं।
"हाँ हाँ तुम तो तरफदारी करोगी ही तुम्हें तो इलेक्शन में साड़ी मिली थी न?" चाचा ने भी मौका देखकर चाची के ख़िलाफ़ बगावत का एलान कर दिया।
"हे फलाने सुनौ तुम भी पिछली बार पांच साल परधान रहे तब तुम एक रुमाल भी नहीं दिलवाए बस जो लूटा घसोटा सब खेत खरीदने में ही लगा दिया। जब मरना तब सारा खेत अपनी खोपड़ी में बांधकर ले जाना...। खाओ पीओ मत बस खेत खरीदते रहो। और बिंनुआ का देखो इलेक्शन में ही पूरी गांव की औरतन को एक एक साड़ी दिला दिया है। तुम्हारी इसमें भी जल रही है।"
"अरे काहे नहीं जलेगी मेरी बीवी होकर तुम दूसरे का परचार करोगी? तो जलेगी नहीं क्या बुझेगी?"
"काहे नहीं करूंगी तुम्हारे जैसा मरद लेकर मैंने चूल्हे में झोंकना है क्या?"
कहाँ तो रामबरन रामसमुझ का घर बुझवाने के लिए चाचा को बुलाने आया था और यहाँ चाचा चाची के बीच में ही आग लगाकर चल दिया।
"राम समुझ के घर में आग लग गई हो....!"
"राम समुझ के घर में आग लग गई हो....!" रामबरन बार-बार यही चिल्लाते हुए आगे बढ़ रहा था। वह इस तरह शोर मचाकर अपने ख़ुशी का इज़हार भी कर रहा था और गाँव वालों को लग रहा था कि वह आग बुझाने के लिए आवाज दे रहा है। इस देश में पड़ोसी के घर में आग लग जाय इस बात से अधिक खुशी वाली बात और क्या हो सकती है भला?
"राम बरन के घर में आग लग गई हो....!" अचानक यह आवाज सुनकर रामबरन का माथा ठनका। हो न हो यह राम समुझ की ही आवाज है। अब उसने आवाज की तरफ दौड़ लगा दी। दौड़ते हुए ही उसने मुनादी करने वाले को साफ अपना ही नाम लेते हुए सुना तो वह अपने घर की ओर दौड़ा। आग उसी के घर में लगी थी।
#चित्रगुप्त
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