ग़ज़ल
तुम्हीं हो गांव की जनता तुम्हीं सरकार मुखिया जी।
चराचर कर रहे तेरी ही जै जै कार मुखिया जी।
पचाया ताल पोखर सब डकारें भी नहीं आईं
कमीशन रोड में खाकर मंगाई कार मुखिया जी।
पड़ी मिड मील की दलिया तेरे भैसों के नादे में
बड़े शातिर शिकारी हो बड़े मक्कार मुखिया जी
गरज थी वोट की तब तक दिखाए ख़्वाब सतरंगी
पड़ा जब काम मेरा तो रहे दुत्कार मुखिया जी।
कहीं सड़कें मिलीं उजड़ी, कहीं पर नल बिना पानी
कहीं पर नालियां टूटी बड़े उपकार मुखियाजी।
बनाया बेटियों बहुओं की खातिर जॉब का कारड
दिखाया काम कागज में कई परकार मुखिया जी।
तुम्हारे झूठ तो सारे छपे हैं इश्तहारों में
तुम्हारे कारनामों से भरे अखबार मुखिया जी।
#चित्रगुप्त
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