ग़ज़ल

कण-कण में कोहराम मचा है
अल्ला अल्ला राम मचा है।

मानवता की बोटी बोटी
कुर्सी का संग्राम मचा है।

इनका कीचड़ उन्हें लगाकर
नीला लाल सलाम मचा है।

किसकी कौन खैरियत पूँछे
चखना बोटी जाम मचा है।

पन्ने फाड़ दिए समता के
बेगी और गुलाम मचा है।

योगा तुलसी हल्दी चंदन
बिल्कुल झंडू बाम मचा है।

कोप भवन कैकेई दशरथ
घर घर सुबहो शाम मचा है।
#चित्रगुप्त

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