दकियानूस

//दकियानूस//

"कहाँ रोज रोज ऑटो में धक्के खाती हो सुप्रिया... आओ बैठो आखिर तुम्हारा घर भी तो मेरे रास्ते  में ही है। मैं तुम्हें छोड़ दूंगा...।"

" वो तो ठीक है सर पर देखने वाले भला बुरा कहेंगे। और मैं नहीं चाहती कि कोई फालतू का इश्यू बने"

"कुछ नहीं होता सुप्रिया ... आओ बैठो। ऐसी सोंच को मैं कब का तौबा कर चुका हूँ। और अगर कोई ऐसा सोंचता भी है तो मुझे बस तरस आती है उसकी सोंच पर। मैं बिल्कुल भी दकियानूसी मानसिकता को बर्दाश्त नहीं करता। जिसने जो बोलना हो बोलता रहे तुम्हें बैठने में ऐतराज नहीं... मुझे बिठाने में तकलीफ नहीं तो फिर देखने वालों का क्या...? जिन्हें अच्छा न लगे वो अपनी आंखें  फोड़ ले। दुनिया चाँद पर प्लाट खरीदने का प्लान बना रही है। और हम हैं कि कौन किसके साथ आ जा रही है अपना पूरा सामर्थ्य इसी को सोंचने में ब्यर्थ कर रहे हैं। "

"तो क्या करूँ?"
"अरे बैठो न यार तुम"

थोड़ी ही देर में मोहन की बाइक सुप्रिया को बिठाकर हवा से बातें करने लगी।

"सर रास्ते मे कहीं मेम ने देख लिया तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी"

"तुम उसकी चिंता ही मत करो यार वो कहाँ कहाँ जाती हैं मुझे सब पता है। तुम बैठी रहो बस मैं ऐसे रास्ते से चलूंगा कि किसी जानपहचान वाले का दर्शन ही नहीं होगा"

बाइक वैसे तो स्पीड में चलती लेकिन ब्रेकर आने पर ब्रेक कुछ इस तरीके से मारी जाती कि पिछली सवारी चालक के ऊपर झूमकर गिरे। चालक की  चालाकी का आनंद यही था। थोड़ी ही देर में ये शुभयात्रा अपने पयाम तक पहुँच गई और सुप्रिया का घर आ गया।

"ठीक है सर थैंक यू... बाय..." सुप्रिया अपना पल्लू सम्हालते हुए बाअदब हुई और अलविदा में हाथ हिला दिया।

"यार सुप्रिया कितनी बार कहा है तुम मुझे सर मत बोला करो" मोहन कहना तो बहुत कुछ चाहता था। पर सब एक साथ तो कहा नहीं जा सकता न इसलिए बात को बढ़ाने के लिए उसने शब्दों का जाल बिछाना शुरू किया पर सुप्रिया लज्जात्मक प्रतिक्रिया ने उसे बाइक स्टार्ट करने पर मजबूर कर दिया।

"ठीक है सर आज के बाद नहीं बोलूंगी" सिर्फ इतना ही बोल पाई थी सुप्रिया और घर की ओर मुखातिब हो गई।

"कल सुबह कितने बजे आऊं"

"नहीं सर तकलीफ की कोई जरूरत नहीं है"

"अब इसमें तकलीफ की बात कहाँ आ गई? जाना तो मैंने भी इसी ऑफिस को है न...? टाइम बोलो जल्दी?"

"आठ बजे" इतना कहकर उसने अपनी कालबेल दबा दिया। न चाहते हुए भी मोहन की बाइक धीरे धीरे आगे बढ़ गई।

मोहन सुप्रिया को छोड़कर अपने घर पहुचा तो देखा एक मोटर साइकिल घर के बाहर पहले से खड़ी है।

घर के अंदर से आ रही मर्दानी आवाज से उसका मन भन्ना गया। उसने दीवार से कान सटा दिया .... जोर-जोर से बात करने और हंसने आवाजें उसके जेहन को चीरती हुई जमींदोज होने लगीं।

"इतने दिन से इंतज़ार कर रही हूँ तुम पहले क्यों नहीं आये" बीवी के मुंह से ये वाक्य सुनकर  मोहन का धैर्य जवाब दे गया । उसने दरवाजे में जोर से धक्का मारा तो अंदर से कुंडी बंद न होने के कारण दरवाजा झटके से खुल गया। सामने उसकी बीवी अपने बड़े भाई और भौजाई के साथ बैठी हुई थी।
#चित्रगुप्त

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