ग़ज़ल

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[८९]
अपने हक के पहरे पर तो, लाठी डंडे भाले हैं
कितने बच्चे भूखे नंगे       उसने हाथी पाले हैं।
अंतर हो उन्नीस बीस का तब तो थोड़ा सब्र करें
सोने की थाली है उनकी अपने टूटे प्याले हैं।
अपनी सारी अभिलाषाएं बंद रह गईं फाइल में
दस्तक उनके घर पर होगी जो नेता के साले हैं।
हमको तो दुत्कार रहे हैं सूंघ पसीने की बदबू 
जिनके मुंह से विस्की गुजरी वे सारे मतवाले हैं।
वे सारे परधान हो गए जो थे हत्या आरोपित 
जो थे गुंडे और मवाली वे सब संसद वाले हैं।
कंकर हो तो छाने बीनें मिट्टी हो तो धुल जाए
राजनीति की थाली में तो दाल भात सब काले हैं।
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[८८]
इश्क किहेव लतियावा जइहौ
बहुतै चटपटियावा       जइहौ 
बप्पा तोहरे         जैसै सुनिहैं 
खेतन मा मचियावा      जइहौ 
अम्मक अपने     जनतै हौ तू 
जुरतै दुर्मुटियावा         जइहौ 
वहिकै बप्पा जौ      सुनि पइहें
थाने मा करियावा         जइहौ 
गांव जेन्वारि     सभे कोइ थूकी 
दर दर से          दुरियावा जइहौ 
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[८७]
जब से परदेश की        नौकरी हो गई ।
जिसको समझा दुआ     बद्दुआ हो गई ।
पिछली छुट्टी में जिससे किया था सेटिंग 
अगली छुट्टी मिली          वो हवा हो गई ।
बोला बेटा ही अंकल        जी बैठो अभी 
तब मेरे दर्द की                 इंतेहा हो गई ।
दो चपत भी धरा         पर्स भी धर लिया 
मेरी बीवी तो पूरी            पुलिस हो गई ।
बैठ लो कोई आके              मेरी बज़्म में 
मेरी वाली तो जाने              कहाँ खो गई ।
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[८६]
बब्बा बब्बा आय देवारी 
झोरन डब्बा लाय देवारी 
बीसौ अंगुरी उनके घिउ मा
बस अपनै भभ्भाय देवारी 
बरहौ मासे रोशन हैं जे 
उनहीं के घर जाय देवारी 
अपनै कहै सुनै बस अपनै
तब केतना खलि जाय देवारी 
फाकामस्ती घरहिनि घर मा 
मनहिनि मन शर्माए देवारी 
गिनव मात्रा छंद बहर तू
गजल दीन हम गाय देवारी 
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[८५]
उठाया चाँद का घूघट वो शरमाया दुहाई है 
झुकाकर झील सी आंखे वो मुस्काया दुहाई है।
वो अरमानों की बारातें मेरे साँसों की शहनाई
मिरे धड़कन के तारों को वो झनकाया दुहाई है ।
मिटाकर रेत के मेरे घरौंदे खुश बहुत था वो 
जो उनके शीश महलों पर कहर आया दुहाई है।
वो खिड़की पर नजर आना झटककर दूर हो जाना 
जो आँचल डालकर कंधे पे सरकाया दुहाई है ।
वो उसकी शोख सी नज़रें मगर लब पर कि खामोशी 
गिरे रुख्सार  पर गेसू जो बलखाया दुहाई है।
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[८४]
कहीं जिंदगी में जो गम मिले वो गली में तेरे सिमट गये ।
तेरी आशिकी मेरी भूल थी सभी धूल बनके लिपट गये।
किये चाँद तारों के वायदे के गली -गली में खिलाएंगे 
मेरी बस्तियां ही जला दिया जो भी कुर्सियों के निकट गये।
कहीं धूप थी तो खिली-खिली कहीं छाँव पीपल आम की 
जो तरक्कियों की चली हवा सभी नीम पीपल कट गए ।
जो लरजते थे मेरी बज़्म में वो गरज पड़ी तो गरज पड़े 
जभी दोस्तों से गले मिले मेरा जिस्म जख्मों से पट गए।
मुझे पूछते थे कि कौन हो ये मिज़ाज़ मतलब ए यार की 
जो जरूरतों पे  सवाल था तो गले से आके लिपट गए 
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[८३]
टूटना जो था बहुत कम टूटा 
ये तो अच्छा हुआ भरम टूटा 
जुल्म जिसने सहे सलामत है
जब भी टूटा है     बेरहम टूटा 
जला दो आग में दिल की बस्ती 
जीस्त का क्या करे   करम टूटा 
अपनी       मजबूरियों में नंगा है 
लोग कहने          लगे शरम टूटा 
जख्म इतना न        कुरेदो लोगों
क्या करें हौसले        जो दम टूटा 
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[८२]
बवाला करेंगे    बवाला करेंगे 
चुनावों में भैया व लाला करेंगे ।
रहे राम जी यूँ ही बैठे अयोध्या 
ए संसद में जाकर घोटाला करेंगे ।
दिखाएंगे दहशत तुम्हें शरियतों का 
के मुल्ला जी फिर से हलाला करेंगे ।
मरेंगे तेरे लाल खा-खा के घुइया 
मलाई  का  कूकुर  निवाला करेंगे ।
सिरफ वोट तक ही है मैया व भैया 
ए आखों को फिर तेरे नाला करेंगे ।
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[८१]
बिल्कुल लल्लन टॉप लिखूंगा 
गदहे को      भी बाप लिखूंगा 
नेताओं के          नाम जहां हैं
मैं तो अजगर      साँप लिखूंगा 
जुमलेबाजी     जब लिखना हो
छप्पन इंची          नाप लिखूंगा 
छपम-छपाई       हल्लम-गुल्ला 
मैं तो बस       चुप चाप लिखूंगा 
लड़ो लड़ाई          तुम मंदिर की 
मैं सीता           का शाप लिखूंगा 
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[८०]
अम्मा बप्पा    दादा भैया 
लेकिन सबसे बड़ी रुपैया 
संझा होतै   साजन-साजन 
दिन भर हमका भैया-भैया 
कुबड़े के शादी मा द्याखौ
लंगड़ा नाचा    थाथमथैया 
एकठो पालैक कूवत नाहीं
बने फिरत हैं कृष्ण कन्हैया 
समय परा जब हमपर द्याखौ
बस्तिम पूरे         परिगा हैया 
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[७९]
गजल क्या गोश्त    खाना हो गया है।
तेरा  मीटर           पुराना हो गया है ।
न हो गर कशमकश कुछ जिंदगी के
तो बस तुक ही    मिलाना हो गया है।
गिराकर दूसरे को      खुद निकलना 
यही बस आबो        दाना हो गया है।
ये मंहगाई में मंहगी     चीज   लाना 
तेरा अभिमान        लाना हो गया है।
कोई लैला न           मजनू हीर रांझा 
ये सब किस्सा         पुराना हो गया है।
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[७८]
सुना है रेत पर फिर से     नया वो घर बनाते हैं
नफरतों से भरी दुनिया में भी वो दिल लगाते हैं।
सुना है बीन कर तेरे      घरों का कीमती मलबा 
हमारे गांव के बच्चे           कई सपने सजाते हैं।
ये मँहगी कार में चेहरे      सजाकर घूमने वालों
हमारे गांव में अब भी   कमल दल मुस्कुराते हैं।
हमारे नाम का खंजर ही         लेकर घूमने वाले 
सुना नाम से मेरे ही            अब सपने सजाते है ।
सुना है बाग से मेरे धुंआ सा      उठ रहा था कल
जहां हम बैठकर उनके          तराने गुनगुनाते है।
न पूछो हाल कुछ दिल का न उनकी बेवफाई का 
हमारी बज़्म में रहकर       भी वो चेहरा छुपाते हैं।
दवाई बाप की मेरे               पढ़ाई नन्हे मुन्नों की 
कई मजबूरियों में हम          कहीं परदेश जाते हैं।
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[७७]
मामले का    जिन्हें   कुछ पता ही नहीं
फैसला दे    रहे         तफसरा ही नहीं।
कत्ल जिसका हुआ वो ही मुलजिम बना 
कातिलों की यहाँ       कुछ खता ही नही ।
हाल क्या है?ये कहते हैं        दिल तोड़कर,
कितने मासूम हैं            कुछ पता ही नहीं।
दुश्मनों से कहो के वो                मगरूर हों
दोस्तों से कोई जब                 वफ़ा ही नहीं।
है कमाई मेरी                    सिर्फ बदनामियां
जिसने दुनिया उजाड़ी             दफा ही नहीं।
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[७६]
सभी रास्तों को मचल कर के देखो 
कभी रास्ते भी बदल   कर के देखो ।
तुम्हे भी मिली होगी कोई तो खूबी 
न खुद कर सके तो नकल कर के देखो।
बहुत रो लिए मतलबी है ये दुनिया
कभी दोस्ती की पहल करके देखो ।
खिज़ा की करोगे शिकायत कहां तक
कहीं दूर जाकर टहल कर के देखो।
है होना वही जो नियत है नियम से 
कभी बंदिशों से निकल कर के देखो।
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[७५]
कमतर है तो कूटा कर
तगड़ा है तो फूटा कर
जज मुंसिफ सब तेरे हैं
सच्चे को भी झूठा कर
कब तक कागज कोरेगा
दिल पर उनके बूटा कर
ईमानों की कीमत क्या
थोड़ा थोड़ा लूटा कर 
जख्मों में जो पिन डाले
तू भी उसके खूटा कर
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[७४]
उड़ानें ख़्वाब में हम भी बहुत ऊँची लगाते हैं
मगर खुलती हैं जब आँखें तो वापस लौट आते हैं
यहाँ तो फूल गोभी ही अभी तक ला न पाया मैं
न जाने लोग कैसे चाँद तारे तोड़ लाते हैं
टिकी हैं बाज की नजरें हमारी साग भाजी पर
जहाँ सब  रेत में जौ डालकर मोती उगाते हैं
तुम्हारी प्यार की कसमें किसी बच्चे की टॉफी हैं
वो खाते हैं नहीं जितना कि कपड़े में लगाते हैं।
हुईं जब शादियां उनकी कमीने हो गये दोनों
बहुत था प्यार उनमें भी पुराने खत बताते हैं।
मेरी औकात तय करती है मेरे जेब की गर्मी
अगर सूखी नदी हो  तो परिंदे लौट जाते हैं
यहाँ हर पेड़ से कह दो वो कोयल पालना सीखें
अगर है डाल खाली फिर तो उल्लू बैठ जाते हैं
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"[७३]
नागफनी का बाग लगा है आंखों में
ताज़ा ताजा ख्वाब लगा है आंखों में
परतें मन की खोलीं हैं जब भी उसने 
जैसे कटता प्याज़ लगा है आंखों में
मुंह देखी बातों पर क्या कहिए साहिब
दरबारों का राग लगा है आंखों में
मतलब वाले आंसू भी हमदर्दी भी 
दिल में नफरत और दगा है आखों में 
इस युग में भी प्यार वफ़ा की उम्मीदें
जाने कैसा खाज  लगा है आंखों में 
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[७२]
कोई जीते कोई हारे मेरा क्या
घर का दीपक घर ही बारे मेरा क्या
मेरे पर तो काट दिए आरक्षण ने
नौकरियां सरकार निकारे मेरा क्या
अपनी खेती चर ली छुट्टे सांडों ने
अब बरषे या सूखा मारे मेरा क्या
था तब था जब रिश्ते सारे टूट गए
अब कोई भी डोरा डारे मेरा क्या 
दिल से ही जब उसने धक्का मार दिया
आंगन कूचे या चौबारे मेरा क्या
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[७१]
काल भी खुद रो पड़ा इन वहशियों के हाल पर।
भूख ने मुजरे किये मजबूरियों की ताल पर।
ईर्ष्याएं जिंदगी में इस कदर हावी हुईं
जल रही है छिपकली भी घोड़ियों के नाल पर।
खो चुकी संवेदनाओं की दवा भी है कोई 
कुछ असर होता नहीं है आदमी की खाल पर।
वो तो लॉलीपॉप देकर कर रहे थे मुतमइन 
घाघ सी नजरें टिकी थीं आपकी ही थाल पर ।
आपको किसने कहा था जाइये फंस जाइये
जो शिकारी है बिखेरेगा ही दाने जाल पर।
जल गई तशरीफ़ घुमची सी मगर हैं रंग में
ताव मूछों पर अनोखे त्योरियां हैं भाल पर 
हम गए 'सामान' लेने 'मान' लेकर आ गये
और कुछ देखा नहीं बस ब्रांड देखा माल पर

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