कविता (चिड़िया की कैद)

चिड़िया की कैद
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एक चिड़िया जो लोहे के सीखचों में बंद थी।
सीखचे पुराने हो गए थे।
चिड़िया को कैद से नफ़रत थी
और लोगों को उस पिंजरे से

सत्ता बदली तो उसे चिड़िया की हालत पर बहुत दुःख हुआ
दुःख होना सत्ता का नैसर्गिक गुण जो है।
नई सरकार ने उसके लोहे के सीखचों पर तांबे और पीतल की परत चढ़वा दी
लोगों का क्या वो खुश हो गए!
खुश तो वो शराब पीकर भी हो जाते हैं!
या कभी कभी भांग खाकर भी...

मगर चिड़िया को तो कैद से नफरत थी!
वह रोती रही
और इतना रोई?
कि अगर किसी टी वी के रियलिटी शो में होती
तो जीत ही जाती
मगर जिंदगी के शो में आंसुओं की कीमत
सिर्फ नेताओं की होती है।
गरीब को तो आँसू भी पसीने के रास्ते निकालना पड़ता है।

थोड़े दिन बाद फिर नई सरकार आई
उसने भी चिड़िया के दुःख पर दुःख जताया
और चांदी का पिंजरा बनवा दिया

फिर उसके बाद की सरकार ने
सोने का पिंजरा

सरकारें आती रहीं जाती रहीं
पिंजरे का रखरखाव मरम्मत और बदलाव होता रहा
भित्ति चित्र तक बना दिए गए
नई पुरानी पेंटिग्स लगा दी गईं

मगर चिड़िया अब भी दुःखी थी
नौकरशाहों ने नेताओं को समझा दिया था
कि दुःखी रहना ही चिड़िया की नियति है!

'चिड़िया अब भी कैद में है।'
और उसे रिहा करने की कोशिशों पर मोटा पर्दा डाल दिया गया है।
#चित्रगुप्त

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