छोटी बच्ची और रिक्शेवाला

छोटी बच्ची और रिक्शेवाला
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जून की चिलचिलाती हुई धूप और दिल्ली की गर्मी, सड़क को देखने पर ऐसा लगता जैसे चिंगारियां निकल रही हों...। आनंद विहार गुरु द्वारे के सामने फुट पाथ पर लगे पेड़ के नीचे अभी चलकर आया एक रिक्शेवाला बैठकर एक गत्ते के से हवा कर रहा था कि सामने से एक महिला आई और बोली- " महाबली पार्क तक चलोगे भैया ?"

"जरूर चलूंगा मैडम पर पचास रुपये लगेंगे।"

"क्या बोल रहा है लूट मची है क्या बीस रुपये तो लगते हैं वहां के...?"

"इतनी धूप है मैडम जाना है तो पचास ही लगेंगे नहीं तो और देख लो..!"

"कितना बदतमीज आदमी है हरामी कहीं का हुंह!" महिला की इन बातों का रिक्शे वाले ने कोई उत्तर न दिया और बैठा चुपचाप गत्ते के टुकड़े से हवा करता रहा। वह महिला वहीं खड़ी होकर आस पास देखने लगी पर वहाँ कोई अन्य रिक्शाचालक भी दिखाई नहीं दे रहा था। उसे थोड़ी देर में ही कोई रिक्शा या ऑटो रिक्शा मिल जाने की उम्मीद थी लेकिन जब काफी इंतज़ार कर लेने के बाद भी कोई न मिला तो वह फिर वापस होकर उस रिक्शेवाले के पास गई और पचास का नोट दिखाते हुए बड़ी अकड़ के साथ बोली - "ले पकड़ पचास रुपये और चल..."

रिक्शेवाले का ईगो महिला की बातों से पहले ही हर्ट हो चुका था इसलिए उसने भी कुढ़ते हुए उत्तर दिया- "आप हजार दो फिर भी नहीं जाऊंगा।"

इतना कहकर वह मुंह फेर कर बैठ गया और महिला अपना से मुंह बनाकर रह जाती कि तभी... 

"चलो न अंकल इतनी धूप है मैं कैसे जाऊंगी" साथ में ही खड़ी छोटी सी बच्ची जो कि संभवतः उस महिला की बेटी होगी अपनी तोतली आवाज में बोल पड़ी। 

"अले ले ले ले... मेली गुलिया लानी ऐछे कैछे जाएगी? उसे अंकल अभी छोड़ कर आएंगे न...?" बच्ची की आवाज सुनकर रिक्शा चालक के अंदर जैसे स्फूर्ति सी आ गई और वह उठकर रिक्शे की गद्दी पर बैठ गया। 
#चित्रगुप्त

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