मुक्तक

अगर विष घोलना ही है तो फिर शुभ काम कैसा है
मिले बदनामियों से जो फकत वो नाम कैसा है।
अमन को खा रहा जो रोज नफ़रत की सियासत से
हमारे 'राम' ने पूछा है इनका 'राम' कैसा है?

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