बालतोड़

बालतोड़
*******
सुबह उठते ही उस्ताद ने देखा कि एक बाबा भिक्षा पात्र लिए दरवाजे पर खड़ा है तो वे चिल्लाने लगे। "जवान हो हाथ पैर भी सही सलामत हैं, भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती? कोई धंधा करो रोजगार करो मेहनत मजदूरी करो कमाओ खाओ। लेकिन हरामखोरी की आदत है न ऐसे कैसे छूटेगी?" इतना कहकर उन्होंने फटाक से दरवाजा बंद किया और अंदर आ गये, जहाँ श्रीमती जी बैठी  कुछ विचित्र सी हरकतें कर रही थीं और टीवी पर बाबा रामदेव का योग शिविर चल रहा था। 

एक तो उस्ताद ऐसे ही गरमाये थे और ऊपर से एक और बाबा को देखकर वे और भड़क गये। 

"हटाओ इस लाला रामदेव को सन्यासी होकर धंधा करता है शर्म नहीं आती इसे तो चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाना चाहिए..."

उनकी बात सुनकर द्वंद युद्ध के लिए श्रीमती जी ने भी कमर कस लिया था।   " सुनो जी..! अभी तो तुम भीख मांगने आये बाबा को काम धंधा करने की सीख दे रहे थे और यहाँ कोई दूसरा बाबा काम धंधा कर रहा है तो उसे सन्यास धर्म सिखा रहे हो आखिर तुम्हें प्रॉब्लम क्या है ये तो बताओ।''

इस हल्ले से सुबह की नींद खराब किये पड़े जमूरे ने चादर के नीचे से मुंह निकाला और बोला- "भाभी जी आप चुप ही रहो उस्ताद की प्रॉब्लम क्या है मैं जानता हूँ। दरअसल इन्हें गलत जगह पर 'बालतोड़' हो गया है। जो इन्हें उठने बैठने में काफी तकलीफ देता रहता है। ये सारी फ्रस्टेशन उसी की है। 

Comments

Popular posts from this blog

लगेगी आग तो

कविता (चिड़िया की कैद)

डाक विभाग को पत्र