ग़ज़ल
हर एक बात का मतलब दिखाई देने लगा,
मरा जो बाप उसे अब दिखाई देने लगा।
कहीं पे दाल कहीं नाच रही थी रोटी,
खुली निगाह तो करतब दिखाई देने लगा।
चला गया था बहुत पास तो दिखता कैसे,
जरा सा दूर हटा तब दिखाई देने लगा।
कहां चराग कहां आग है कहां है धुआं
जला के हाथ मुझे सब दिखाई देने लगा
लगा के आग को कहते हो तमाशा क्या है,
बताओ यार तुम्हें कब दिखाई देने लगा।
मरा वो भूख से इसकी किसी को फिक्र नहीं,
सभी को लाश का मजहब दिखाई देने लगा।
रहा मिज़ाज से अंधा तो सभी बैठे थे,
बचा कोई भी नहीं जब दिखाई देने लगा।
गिरा तो छोड़ दिया साथ मेरा अपनो ने,
उसी के बाद मुझे रब दिखाई देने लगा।
#चित्रगुप्त
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