किंग नहीं किंग मेकर थे : श्री गुलाब चंद्र शुक्ल

किंग नहीं किंग मेकर थे: श्री गुलाब चंद्र शुक्ल

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श्री गुलाब चंद्र शुक्ल जी विनोदी स्वभाव के थे। हर बात में मजाक करना और आसपास वालों को हंसी में सराबोर रखना उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा था। गूढ़ से गूढ़ विषय को भी वह इतनी सरलता से हास्य में पिरोकर कह देते थे कि सामने वाला लाजवाब हो जाता था। क्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच कुर्ता पायजामा सदरी और काली टोपी उनकी पहचान हुआ करती थी। वही काली टोपी जो एक स्वयं सेवक की पहचान हुआ करती है वह हमेशा बड़ी शान से उसे पहना करते थे। इकहरे बदन की कर्मठ काया से वह जहां भी पहुंचते पूरा माहौल खुशनुमा हो जाता था। वह भाषण में भी कुछ न कुछ ऐसा जरूर बोल देते थे कि सारे श्रोता लहालोट हो जाते थे। रास्ता चलते हुए भी उनसे बात करने वाला बिना मुस्कराए नहीं रह पाता था। वह बात ही ऐसी करते थे कि रोता हुआ आदमी भी हंसते हुए जाए।


हाजिर जवाबी उनके रोम-रोम में भरा हुआ था। उनके सामने कितनी भी सावधानी से बात किया जाय वो उसमें से भी कुछ न कुछ ऐसा जरूर निकाल लेते थे कि उसका मजाक बनाया जा सके। वह लाजवाब थे। उनका स्वभाव ऐसा था कि उनसे राम जोहार करने के लिए जाओ दस बीस मिनट बात करके ही जाने की इच्छा हो जाए।


एक बार सुबह-सुबह घर की ओर जाते हुए एक रिक्शे वाले ने उन्हें प्रणाम किया और पूछने लगा-


"शुकुल अभी तो आप इधर से गए थे अभी फिर वापस जा रहे हैं?"


उसका इतना बोलना था कि शुकुल जैसे पहले से ही तैयार होकर बैठे थे। उसका सवाल खत्म होते ही वह तपाक से बोले-

"क्यों सड़क तुम्हारे नाम बैनामा है क्या? या तुम यहां के पहरेदार लगे हो, मेरी मर्जी मैं जितनी बार भी आऊं-जाऊं? इसमें तुम्हारे बाप का क्या जाता है? आखिर चल मैं रहा हूं और दर्द तुम्हारे पैर में क्यों हो रहा है?"


कोई उन्हें न जानने वाला उनकी ऐसी बातों पर नाराज भी हो सकता था। पर वो जितना बोलते जा रहे थे वो रिक्शेवाला उतना ही जोर-जोर से हंस रहा था। उनका हर जानने वाला उनके इस मजाकिया स्वभाव से परिचित रहता था। 


एक बात और वो जनपद के बड़े नेता थे। सांसद विधायक तक उनकी जी हुजूरी किया करते थे लेकिन दंभ उन्हें रंच मात्र भी छू न पाया था। ठेले वाले सब्जी वाले खोमचे वाले रिक्शे वाले टेंपो वाले सबसे उनका हाल-चाल होता था। और हाल-चाल भी दूर-दूर वाला नहीं बल्कि उनका सबसे दोस्ताना संबंध था। वह छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी उसके नाम से जानते थे और सबसे याराना निभाते थे। 


एक बार वो बहराइच में ही एक बड़े नेता के घर में बैठे हुए थे। उन्हें कहीं विजिट पर जाना था। साथ में कई अन्य लोग भी बैठे हुए थे। जब चलने का टाइम हुआ तो नेता जी घर के अंदर चले गए फिर काफी देर तक बाकी लोग बाहर खड़े उनका इंतजार करते रहे। 


जब काफी देर हो गया तो उनमें से एक कार्यकर्ता बोला- "पता नहीं क्या कर रहे हैं अंदर कितना देर हो गया?"


कार्यकर्ता का इतना बोलना बोलना था कि शुकुल बोल पड़े- "मेहरारू का पैर छूने गए हैं, आखिर शुभकाम के लिए जा रहे हैं गृह लक्ष्मी का आशीर्वाद लेकर भी न जाएं क्या?"


उनकी इस बात पर सभी लोग हंसने लगे। इसके बाद टेंशन वाला माहौल हल्का हो गया और सभी लोग आपस में हंसी मजाक करते हुए आगे के सफर पर गए। 


एक ओर जहां नई पीढ़ी बुजुर्गों से बचकर चलती है वहीं श्री गुलाब चंद्र शुक्ल जी का स्वभाव ऐसा था कि वह अपने आखिरी दिनों तक नई पीढ़ी की पहली पसंद बने हुए थे। वह कोई नसीहत भी होम्योपैथिक दवाई की तरह मीठी गोली में मिलाकर देते थे जिससे उसे लेने में किसी को कोई असुविधा न हो। हर नया कार्यकर्ता हमेशा इस कोशिश में रहता था कि शुकुल जी के साथ गाड़ी में बैठने का मौका मिल जाए। 


एक बार मैने उन्हें एक विद्यार्थी को समझाते हुए सुना था कि - "देखना कहीं पढ़ मत लेना भैया वरना पास हो जाओगे तो कुल का नाम कौन डुबाएगा? वैसे भी तुम अपने मां बाप के इकलौती संतान हो तुम्हीं उनका नाम रोशन कर दोगे तो फिर कुल का नाम डुबाएगा कौन...?"


उनकी भाषा का शब्दार्थ अलग भावार्थ अलग और लक्ष्यार्थ अलग होता था। वह साहित्यकार तो नहीं थे पर उनके पास भाषा का ऐसा कौशल था कि कोई भी उनसे मिलने वाला उनके इस गुण का कायल हुए बिना नहीं सकता था।


आधी सदी से भी ज्यादा सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहने वाले श्री शुक्ल जी के स्वभाव को देखकर कोई इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि वह गंभीर राजनीति भी कर सकते हैं। लेकिन उनका जुझारूपना भी लाजवाब था। धरना देते हुए अनशन पर बैठते हुए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 


1992 में मुलायम सिंह के शासन काल में जब जनपद में खाद का संकट गहराया तब शुक्ल जी ने पयागपुर ब्लॉक में 9 दिनों का अनशन किया था। पहले तो शासन ने उनके अनशन को डंडे के जोर पर विफल करने का पूरा प्रयास किया लेकिन कुशल नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के उत्साह के कारण अंततः सरकार को झुकना पड़ा और जनपद में खाद की आपूर्ति निर्बाध रूप से शुरू होने के उपरांत ही इनका अनशन टूटा था। 


एक अच्छे नेता के अंदर वो सभी गुण होने चाहिए जिसकी एक आवाज़ पर उस देश की जनता उठकर खड़ी हो जाये, और उसकी बातों का अनुसरण करे। शुक्ल जी ने कई मौकों पर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया था। वर्ष 1993 में बहराइच विधान सभा चुनाव संयोजक के रूप में काम करते हुए इनकी अगुआई में प्रत्याशी ने पिछले चुनाव के मुकाबले 10,000 अधिक मत प्राप्त किए थे हालांकि वह चुनाव पार्टी हार गई थी लेकिन इस अधिक मत प्राप्त करने वाली सफलता को भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।


भारतीय इतिहास में ऐसे कई अच्छे नेता हुए है। जिनके नेतृत्व में हमें आज़ादी मिलीं, और आज भी कई ऐसे नेता है, जो कि देश हित में काम कर रहे हैं। लेकिन इन बड़े नेताओं की सफलता के पीछे जनपद स्तर या इससे भी निचले स्तर पर काम करने वाले नेताओं के योगदान को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। एक अच्छे नेता के विचारों, उसके गुणों और उसके व्यक्तित्व इत्यादि के बारे में हम जब भी चर्चा करें तो शुक्ल जी जैसे जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले नेताओं के योगदान को भी सराहा जाना चाहिए। 


दुनिया में अच्छे, ईमानदार और प्रभावशाली नेताओं की हमेशा ही कमी रही है। हर किसी देश को एक अच्छे और उनका सही मार्गदर्शन करने वाले नेताओं की जरुरत रही है। भारत हो या अन्य देशों के लोग जिसमें उन्हें एक नेता के कुछ गुण दिखते है सभी उसके पीछे हो लेते है। कोई भी नेता हो वो हमारे जैसे ही आम होता है, पर उसमे कुछ ऐसी योग्यता होती है जो की उसे हमसे भिन्न बनाती है। कोई भी नेता बस हमारा नेतृत्व कर हमारा मार्गदर्शन करता है।


एक अच्छा नेता सच्चा, दूरदर्शी, सामयिक, और पारदर्शी होता है। उसके पास एक लक्ष्य, बलिदान की भावना, नेतृत्व इत्यादि अनेक गुण निहित होते है। श्री शुक्ल जी के अंदर एक सफल और कुशल नेता के सभी गुण मौजूद थे। वह हमेशा अपने कार्यकर्ता के हित में काम करने के लिए जाने जाते रहे। उन्होंने पार्टी के निर्णय को हमेशा शिरोधार्य किया और इससे आगे बढ़कर अपनी महत्वाकांक्षा के लिए कभी भी पार्टी लाइन को दरकिनार नहीं किया। 


कोई भी नेता हमारे बीच से ही आता है, पर उनके अंदर कुछ गुण ऐसे होते है, जो उन्हें हमसे अलग बनाती हैं। श्री शुक्ल जी ऐसे ही नेता थे जो दिखने में तो बिल्कुल हमारे जैसे थे लेकिन उनका व्यक्तित्व चुंबकीय था जिससे वह आसानी से अपने कार्यकर्ता से जुड़ जाते थे। एक अच्छे नेता का मतलब होता है- “एक बेहतर नेतृत्व”। शुक्ल जी की नेतृत्व क्षमता अद्भुद थी। वह जब कार्यकर्ता से बात करते थे तो वह किसी भी काम के लिए उसे प्रेरित कर सकते थे। नेता के पास अपने एक लक्ष्य होने चाहिए और वो लक्ष्य देश हित या समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए। शुक्ल जी ने राष्टवादी विचारधारा के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया। वह हमेशा राष्ट्र के लिए समर्पित कार्यकर्ता और नेता थे। हम सभी के अंदर कही न कही एक नेता होता है, पर जो अपने अंदर के इस गुण को पहचान कर एक लक्ष्य के तहत आगे बढ़ता है वही सफल होता है। एक नेता के अंदर अपनी एक अलग सोच होती है। उसके अन्दर लोगों को अपने भाषण से आकर्षित करने का एक गुण होता है। शुक्ल जी के संपर्क में रहने पर वह निरंतर अपने कार्यकर्ता के गुणों का संवर्धन करते रहते थे। वह नए कार्यकर्ता को हमेशा आगे करते उसे भाषण देने का अवसर प्रदान करते उसकी कमियों और खूबियों को बराबर बताते उससे निकलने का रास्ता भी सुझाते थे।


कोई भी व्यक्ति अच्छे गुणों के अनुसरण और लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करके एक अच्छा नेता बन सकता है। ऐसा नहीं है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से ही नेता होता है। वह केवल कुछ विशेष गुणों अपनी मेहनत और अपने सच्चाई के दम पर एक अच्छा नेता बनता है। श्री शुक्ल जी के साथ रहने पर वह बराबर ऐसी बातें बताते रहते थे और नए लोगों को वह हमेशा प्रोत्साहित करते थे। अपने हंसी मजाक वाले आदत के साथ वह सीख की ऐसी घुट्टी पिलाते थे जिससे उनके कार्यकर्ता का बराबर परिष्कार होता रहे।


किसी भी देश के उत्थान में, उसके नेतृत्व का सर्वाधिक योगदान होता है जो एक कुशल नेता के द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है। नेता अपने लक्ष्य का निर्धारण, अपने साहस, कर्मठता, लगन अपनी बुद्धि और विवेक के इस्तेमाल से करता है। उसी के सहारे पूरा देश आगे बढ़ता है। एक स्वार्थी नेता सिर्फ अपने परिवार और रिश्तेदार को आगे बढ़ाता है वहीं एक योग्य नेता सारे देश को एक साथ लेकर चलता है। वह किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करता है। कोई भी संस्थान हो या देश सबको साथ लिए बगैर वह उन्नति के मार्ग पर नहीं चल सकता है।  कार्य कोई भी हो वह किसी अच्छे नेता के बिना संभव नहीं हैं। एक अच्छा नेता समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को दूर करने का भरसक प्रयास करता है और स्वयं के आचरण द्वारा जनता को प्रेरित करता है। 


श्री शुक्ल जी भले ही आज हमारे बीच न हों पर उनके द्वारा बताई गई ऐसी बहुत सी बातें हैं जो आने वाले वर्षो में हम सबका मार्ग दर्शन करती रहेंगी। उनके बताए रास्तों का अनुसरण करके हम देश को उन्नति की राह पर ले जाएं यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


संगठन के विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने अपने काम से जो मानक स्थापित किया है वह अन्य कार्यकर्ताओं को सदैव प्रेरणा देता रहेगा। 


चित्रगुप्त






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