गजल

खोल देंगे सीवरों के पट सभी
कर दिया दिल को अगर दरिया कभी

इस धरा पर जीव के अस्तित्व की
आखिरी लगने लगी है ये सदी

अपना सोचो उसकी चिंता मत करो
वह जो खुद अवतार है या है नबी

फिक्र थोड़ी पेड़ पौधों की करो
इससे पहले सूख जाए हर नदी।

रो रही है धरती हमारी सोचकर
क्या पता था नेकियां देंगी बदी। 

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