ग़ज़ल
जब तू खुद अपनी उम्मीदों को पर देगा
तब तो कोई उड़ने का भी अवसर देगा।
छोड़ो भी जो अनदेखा करते हैं तुमको
कोई तो होगा ही जो तुमको सर देगा।
जल्दी पा लेने वाले हैं तुमसे कमतर
रुक जाओ थोड़ा वो तुमको बेहतर देगा।
अपने ख़ातिर मौलाना को आज अभी ही
और नमाजी को मौला सब ऊपर देगा।
लूटी हुई कमाई से दो पैसा देकर
सोच रहे हैं ये सब पापों को हर देगा।
अच्छी किस्मत वाला भी निष्क्रिय बैठे तो
ऊपर वाला भी कैसे झोली भर देगा।
जनता दरी बिछाये बैठी सोच रही है
जो कुर्सी पर बैठा है वो सब कर देगा।
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