ग़ज़ल
जख़्म ही थे, पिघल गए होंगे
शब्द साँचे में ढल गए होंगे
लोग कहने लगे निशाने बाज
तीर तुक्के में चल गए होंगे
शेर मैं तो कभी कहता
जो हुए हैं निकल गये होंगे।
आपसे इश्क की बातें, ना ना
यूँ ही अरमा मचल गए होंगे।
फूल कल तक हरे भरे ही थे
तुमको देखा तो जल गए होंगे।
क्या कहूँ आदमी बदले कैसे?
वक्त जैसे बदल गए होंगे।
हम किसी काम के नहीं थे बस
और क्या था जो खल गए होंगे?
#चित्रगुप्त
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