ग़ज़ल

कहता तो हूँ उससे अब छोड़ो जाऊँ
लेकिन उसकी लत छोड़े तब तो जाऊँ

माँ कहती है सुबह हो गई उठ जाओ
मन कहता है मुँह ढककर के सो जाऊँ

दुनिया कहती है सीखो दुनिया दारी
मेरा मन है ख्वाबों में ही खो जाऊँ।

कौन समंदर होने को लालायित है
लेकिन कतरा दरिया कुछ तो हो जाऊँ

खर-पतवारों में भी कुछ तो होगा ही
लाओ इनमें कुछ फूलों को बो जाऊँ

#चित्रगुप्त

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