कब तक दलित

कब तक दलित
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(आज जमूरा तहसीलदार ऑफिस के क्लर्क की भूमिका में है।)

"आज तो संडे की छुट्टी है न जमूरे ? फिर ये सुबह सुबह तैयार होकर कहाँ चले...?"

"कुछ ख़ास नहीं उस्ताद बस तहसीलदार साहब का फोन आया था। उनके कोई सीनियर आई ए एस हैं। जो इसी तहसील के स्थायी निवासी हैं। उनका ही कुछ काम था उसी सिलसिले में दफ़्तर तक जाना पड़ेगा।"

"कौन सा ऐसा जरूरी काम है जो आज ही करना है वो कल भी हो सकता होगा न...?"

"अरे उस्ताद यही तो बात है न...? बड़े आदमियों के नख़रे भी बड़े ही होते हैं। बच्चे का यूपीएससी में फॉर्म भरवा रखे हैं तो अब जाति प्रमाण पत्र निकलवाना है और मेरे संडे की ऐसी तैसी मार रहे हैं।"

"कहीं एकनथवा की बात तो नहीं कर रहे तुम...?"

"हाँ हाँ वही ..."

"ये तो पिछली तीन पीढ़ियों से आईएएस हैं लेकिन अब तक दलित ही हैं क्या?"

"जो संविधान में लिखा है उसे थोड़ी न काट सकते हैं उस्ताद! ये अलग बात है कि मठाधीशी में ये पंडितों के भी महा पंडित हैं।"

#चित्रगुप्त 

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