ग़ज़ल

चाहना ही है अगर यूँ चाहिए तो बात हो
ख़्वाब में कुछ चांद तारे लाइए तो बात हो।

आपने अपनी चलाई तो गये सर से मियाँ
मन मुआफ़िक राग उनके गाइए तो बात हो

हम भी आ जाएंगे अपने ज़ख्म सारे खोलकर
आप भी शमशीर लेकर आइए तो बात हो।

हक बयानी मैं ही कब तक यूँ करूंगा आपकी
आप भी हक़ में मेरे फरमाइए तो बात हो।

काम अटकेगा नहीं तो और क्या होगा भला
भोग ऊपर दीजिए फिर खाइए तो बात हो।

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