बेकार आदमी

बेकार आदमी
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पिता जी की साइकिल का प्रवेश घर की चौहद्दी में होते ही मन्नू उठकर चल दिया, लेकिन उसे देखने के बाद पिता जी का जो पारा चढ़ा था उसने तो पुत्तन पर फूटना ही था। 

"पुत्तन तुमने शराब पीनी भी शुरू कर दी क्या?" पिता जी ने साइकिल को दीवार से लगाते हुए चीखना शुरू कर दिया। 

पुत्तन क्या बोलता सिर झुकाए खड़ा रहा उसे तो पता ही था कि मन्नू को साथ देखकर  कुछ ऐसा ही होने वाला है। इसीलिए तो मन्नू भी इनको देखते ही उठकर चला गया था।

"..तुम कुछ बोलते क्यों नहीं" पिता जी फिर घुड़के..."दोस्ती करने के लिए तुम्हें कोई ढंग का आदमी भी नहीं मिलता गांव के जितने भी गंजेड़ी शराबी हैं उनके बीच ही उठना है तुम्हारा..देखो मास्टर के लड़के को छोटी सी दुकान खोला था आज पूछो लाखों में खेल रहा है, दूसरा छोड़ो महरा के लड़के को ही देखो मजदूरी करते करते ठेकेदार बन गया... और तुम?" पिता जी पुत्तन पर ख़फ़ा तो पहले ही थे पर बरसने का मौका मन्नू ने उपलब्ध करा दिया था। 

मन्नू दारू पीता है गांजा पीता है ये तो सही बात है पर आदमी खराब नहीं है। कुछ रोज पहले ही गांव के कुछ  दबंगो ने बाजार में जब पुत्तन को घेर लिया था तो मन्नू ने ही उसे बचाया था। पिता जी को भी जब खेत मे काम करते हुए सांड ने दौड़ाया तो मन्नू ही था जो दीवार की तरह उसके सामने अड़ गया था। क्या पिता जी को ये सब नहीं पता...? सब पता है पर उसके नशे की लत ने उसकी सब अच्छाइयों पर पानी फेर दिया है। कौन बाप चाहेगा भला कि उसका बेटा किसी नशेड़ी की संगत में बैठे।

मन्नू जिस गली से भी गुजर जाता उस गली के उसके हमउम्र अपने माँ बाप या बीवी की लताड़ जरूर पाते... "तुम्हारी दोस्ती होगी न इसके साथ तभी तो ये आया था।" बेचारा मन्नू सुन भी लेता तो कुछ नहीं बोलता बस हंसकर चला जाता। इतनी लानत मलामत के बाद भी अगर जरूरत में कोई उसे याद करे तो क्या मजाल कि मन्नू मना करे। खंभे पर चढ़कर लाइट ठीक करना हो, शादी के लिए लकड़ी फ़ाड़नी हो या कोई पेड़ पर चढ़ने वाला कोई काम ... मन्नू को रात दिन कोसने वालों को भी मन्नू अचानक से प्यारा हो जाता दस बीस रुपयों के ही लालच में मन्नू अपने जिंदगी को दांव पर लगा देता लेकिन काम निकलते ही कोई नहीं चाहता  कि मन्नू उसके दरवाजे पर फटके...

घंटा भर हो गया पर पिता जी का कोप अभी तक शांत नहीं हुआ था। पुत्तन का बेटा भी वहीं खेल रहा था और अपने दादा जी के द्वारा हो रही अपने बाप की खिंचाई  का भरपूर मजा भी ले रहा था। अचानक माहौल में  अफरातफरी मच जाती है। पुत्तन का बेटा खेलते खेलते कुएं में गिर गया।  

एकलौते बेटे की जान मुश्किल में है पर पुत्तन की जिजीविषा कुएं की गहराई पर भारी पड़ रही है। पिता जी भी बस हल्ला ही मचा रहे हैं। गांव के कुछ ठलुए भी तमाशा देखने तुरंत प्रकट हुए हैं जो एक दूसरे को पुरानी कहानियां सुनाकर रसरंजन कर रहे हैं। मास्टर साहब और वकील साहब कपड़ा खराब हो जाने के डर से दूर ही खड़े  रहकर हालात का जायजा ले रहे हैं। कुछ लोग इस कुएं में गिरने वालों के आंकड़े बता रहे हैं कि इसमें गिरने वाला आज तक तो बचा नहीं है। महरा के पुत्र ठेकेदार भी आये हैं जो दमकल बुलाने के लिए फोन कर रहे हैं। मास्टर के पुत्र बिजनेस मैन भी आये हैं जो मन ही मन अंतिम क्रिया की तैयारियां भी कर चुके हैं। दो चार एंग्री यंग मैन टाइप भी हैं जो कुएं में उतरने को तो आतुर हैं पर उनके माँ बाप उन्हें पूरी ताकत से पकड़े हुए हैं। राम बरन काका हैं जिनमें ढलती उम्र में भी जवानी का टशन अभी गया नहीं है वो रस्सी लाओ रस्सी लाओ की आवाज लगा रहे हैं और साथ ही कुएं में घुसने के लिए धोती का लांग चढ़ा रहे हैं।

मन्नू आया ... उसने बिना कुछ बोले रामदेई काकी और मनोहरा भौजी की साड़ी पकड़कर खींचा तो वो एक झटके में ही खुल गई। दोनों पेटी कोट और ब्लाउज में भौचक खड़ी देहाती गालियों के उफ़ान में मन्नू को बहातीं उससे पहले ही उसने दोनों साड़ियों को जोड़ा और जंगले (वह लकड़ी जो कुएं के बीचों बीच रखी जाती है) से बांधकर कुएं में कूद गया।

कुआं ज्यादा दिन से इस्तेमाल न होने के कारण उसमें पानी नाम मात्र का ही था घास फूस और कीचड़ में बच्चा आधा धंसा था। मन्नू ने उसे हिलाया झुलाया तो वह बेहोश था। साड़ी में बांधकर बच्चे को ऊपर खींच लिया गया। पुत्तन बच्चे को लेकर तुरंत अस्पताल भागा। 

साड़ी बाहर आते ही रामदेई काकी उसे खोलने लगीं। मन्नू कुएं के अंदर ही है और साड़ी वापस दे देने की गुहार लगा रहा है। मनोहरा भौजी अब तक घर जाकर दूसरी साड़ी पहन कर आ गईं हैं और मन्नू के निकलने के इंतज़ार में हैं जिससे वो उसे सरेआम साड़ी खोल लेने के लिए लड़ सकें। 
#चित्रगुप्त 



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