फर्स्ट लाइट
//फर्स्ट लाइट//
पपीहे ने फिर से बोलना शुरूं कर दिया था। हवाओं की सुरसुराहट उसके कानों में विष घोलते हुए चादर को कोने से उड़ाकर आधे बिस्तर तक ले आई थी। मुनकी ने करवट बदलते हुए अपना हाथ बिस्तर के दूसरे तरफ लगाया और चौंक कर उठ गई।
विधवा स्त्री को परपुरुष के सपने... राम राम राम राम... ये क्या अनर्थ कर रहे हो भगवान... उसने गले से रुद्राक्ष की माला निकाली और जपने लगी। काफी देर माला फेरने के बाद उसे अहसास हुआ कि वो राम-राम न कहकर रघु-रघु बोले जा रही है। और वह झटके से उठकर खड़ी हो गई।
झींगुरों की आवाजें भी रात के साथ-साथ ठंडी पड़ती जा रही थीं। कहीं दूर से सियारों की आवाजें आनी शुरूं हो गई थी। आधा-अधूरा चाँद भी अपनी पूरी कसक के साथ उसके माथे पर चमक रहा था। पर मन का तूफान था कि शांत होने के बजाय और उमड़ घुमड़ रहा था।
मुनकी धीरे-धीरे छत से नीचे उतरने लगी। सीढ़ियों पर आहट पाकर उसकी माँ भी जाग गई। क्या हुआ रे मुनकिया...? कहाँ जा रही है?
कहीं नहीं अम्मा थोड़ा नाली पर जा रही हूं। उसने बड़ी गैरजिम्मेदारी से जवाब दिया और नीचे उतर गई।
मन में इतनी खिन्नता और शरीर में इतना भारीपन उसे कभी महसूस नहीं हुआ था। उसका अंग-अंग पर्वत हो रहा था। माला के मनकों को वो और तेज-तेज फेरने लगी... थोड़ी देर इधर-उधर घूमने के बाद वापस अपने बिस्तर पर आकर बैठ गई।
उसके छत के बगल में ही घर के बाहर रघु भी अपनी चारपाई डाले सो रहा था। आसमान का बचा हुआ आधा चाँद जैसे यहीं निद्रालीन हो... मुनकी की नजर उसपर पड़ते ही उसने झट आंखे फेर लीं... देखते दोनों एक दूसरे को अरसे से थे। बातचीत के बहाने भी खूब ढूढें जाते थे। बिना सिर पैर की बातें भी खूब होती थीं। पर मन की बात मनके में ही अटक कर रह जाती थी।
आखिर ये रघु का बच्चा है किस खेत का मूली..? आखिर अपने मुंह से बहुत कुछ कहकर वह क्यों नहीं कहता जो मैं सुनना चाहती हूँ । औरत हूँ मैं... मुझे तो लज्जाशील होना भी चाहिए पर इस घूर को क्या परेशानी है। हाथ भी लगाओ तो बिदक जाता है। मर्द का साधू होना भी न जाने क्यों आज उसके मन को खटक रहा था। मनके फेरते हुए मुनकी छत के चहारदीवारी से लगकर खड़ी हो गई थी ।
सोलह साल में शादी और बीसवें साल में विधवा आखिर नियति को भी तरस नहीं आया होगा शायद ... और ऊपर से रीतिरिवाजों के ये जाले... उसे याद आया पिछले साल भूकंप में ड्योहार बाबा का मंदिर गिरने के बाद गांववालों ने मिलकर तुरंत दूसरे मंदिर की नींव रखी और महीने भर के भीतर ही उसे बनवाकर उसमें पूजा भी शुरूं हो गई। एक मंदिर गिर जाने के बाद लोगों ने पूजा करना नहीं छोड़ा दूसरा मंदिर खड़ा कर लिया... एक दिन भी शोक नही मनाया ... तो फिर मेरे साथ इतना अन्याय क्यों...? आखिर वह क्यों न देखे किसी को... क्यों न सजे संवरे..? कई सवाल एक साथ उसके मन में उठे और खून तेज़ी से दौड़ने लगा।
रात का आखिरी पहर हो चुका था। पर नींद थी कि उसकी आँखों से कोसों दूर थी। अम्मा ने भी अब तक शिव शिव कहते हुए कई बार करवट बदला था ...
चाँद भी अब रसातल में जाने की तैयारी में था चाँदनी की छाया पेड़ों की आड़ में जाकर रघु के चारपाई को ढक चुकी थी। मुनकी उठी और इधर उधर कंकर ढूढने लगी।
आसपास कुछ न पाकर उसने रुद्राक्ष की माला तोड़ दी और उसी में से एक दाना उठाकर रघु की तरफ उछाल दिया।
निशाना ठीक जगह पर लगा था। वह भी अपनी चारपाई पर उठ बैठा... आगत का अंदाजा लगाने के लिए वह इधर उधर देख ही रहा था कि दूसरा दाना भी उसकी गोद में जा गिरा... उसने नजरें उठाई तो सामने छत पर मुनकी खड़ी थी। मुस्कुराहटों में कुछ सवाल-जवाब के उपरांत दिन की प्रतीक्षा में रात धीरे-धीरे ढलने लगी।
#चित्रगुप्त
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