फर्स्ट लाइट

कभी रोटियों की चिंता
कभी कपड़ों की फिक्र
तो कहीं मकान की आपाधापी

फिर भी
तुम्हारी जिद और
मेरी मजबूरियों के बीच
सिर्फ मेरी तरेरी हुई आंखें ही नुमाया हुई

हजार बार टूटकर भी
अकड़ा रहा
तुम्हारे मान की खातिर

तुम्हें डांट कर
कितनी बार
छुपाया था अपनी कमतरी
ताकि तुम हंस सको
खिलखिलाकर

और कायम रहे तुम्हारा यकीन
मेरी मर्दानगी पर

मैं और मेरा
सब तुम्हारा था
और बस एक तुम थे
जिसे मैं अपना समझने के भ्रम में था।

और तुम थे जो समझते रहे मुझे जालिम ही
उम्र भर

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