दम्भ

//सबसे इम्पोर्टेन्ट बात..//

पीछे कुछ आहट सी हुई तो जवान ने होंठों पर उंगली रखते हुए उसे खामोश रहने का इशारा किया और गिद्ध दृष्टि टारगेट पर जमाये हुए उसके नजदीक आने की प्रतीक्षा में दरख़्त की आड़ लिए चुपचाप पड़ा रहा....

दुश्मन के कारगर रेंज में आते ही जवान ने फायर खोल दिया, और देखते ही देखते दर्जन भर से अधिक दुश्मनों की लाशें लंबायमान हो गईं।

पूरी पल्टन में जश्न का माहौल था। सिपाही तो अपनी कामयाबी पर फूला ही नहीं समा रहा था कि एक ओहदेदार ने उसे आकर ये फरमान सुनाया कि समादेशक महोदय ने उसे बुलाया है।

शाबाशी पाने की उम्मीद में जवान भी फौरन उनके दफ्तर में हाजिर हो गया....

"अबे तू है कौन..?" उसे देखते ही समादेशक का पारा सातवें आसमान पर था।

मैं कुछ समझा नहीं साब... जवान ने सकुचाते हुए सवाल किया।

अबे तूने कितने मारे कितने गिराए उसकी ऐसी की तैसी पहले तो तू ये बता कि जब मैं तेरे पीछे तक आया उस समय तूने मुझे 'जयहिंद' क्यों नहीं बोला...? समादेशक गुस्से में लाल हो रहे थे।

अरे सर वहाँ आपको विष करने से ज्यादा जरूरी उन दुश्मनों पर नजर रखना था। वरना अगर उन्हें हमारे होने का अंदेशा हो जाता तो टारगेट हमारे हाथ से निकल सकता था। जवान ने जवाब दिया...

सीनियर से मुंह बजाता है... देख तेरी ड्यूटी ऐसी जगह लगाऊंगा कि तू अपनी सारी हेकड़ी भूल जाएगा... समादेशक गुस्से में अब अपनी कुर्सी से उठ चुके थे।

"अर्दली इसे धक्के मारकर बाहर निकालो..."  वे चिल्लाये

दफ्तर के बाहर निकलते ही दंडपाल व अन्य अधिकारी जवान को समझाने के लिए मौजूद थे।

देख भाई ... "तू किसी भी पोजीशन में हो दुश्मन मरें या भाड़ में जाएं पर सीनियर को विश करना मत भूलना... वरना तू तो जानता ही है कि नौकरी खराब हो जाएगी..."
#चित्रगुप्त

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