साहब की डायरी
साहब की डायरी
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मनोहर को वैसे तो कुछ आता जाता नहीं था लेकिन वह बड़े बड़ों के घर/दफ्तर आता जाता बहुत था, इसलिए उसकी पदोन्नति में कहीं कोई बाधा नहीं आई। साहब को जहां एक की जरूरत थी उसने वहां चार हाजिर किया उसका फायदा यह हुआ कि इसकी फाइल कहीं रुकी नहीं। बाकियों की फाइलें जहां घड़ी के पेंडुलम की तरह बस एक ही खूंटे से बंधी हुई आलमारी से मेज और मेज से आलमारी के बीच हिलती रहीं वहीं मनोहर की फाइल शोएब अख्तर के गेंद की तरह जैसे ही साहब के पास पहुंची तो उन्होंने रूम बनाकर फाइल को फुलटोस पर लिया और सीधे हाईकमान के हाथों में पहुंचा दिया। साहब मेहरबान तो चपरासी पहलवान... मनोहर ने भूसी को भी दाल कहकर चलाया तो वह चल गई। बाकी की दाल जल गई और इनकी गल गई। इन्होंने राई को पहाड़ कहा तो वह अकाट्य सत्य हो गया। इन्होंने बेहया के फूल को भी गुलाब कहा तो फिर गुलाब जल की जगह बेहया जल बनाया जाने लगा। इन्होंने ऊंटनी के दूध को गाय का कहकर चलाया तो उसी का पंचामृत बनाया जाने लगा।
मनोहर को वैसे तो घुईयां छीलने की भी तमीज नहीं थी लेकिन कटहल मिल गया था काटने के लिए। अब क्या काटें और क्या समेटें...?। प्रमोशन मिलते ही उनकी चाल में अकड़ आ गई थी। उठने बैठने के तौर तरीके बदली हो गए थे। नए पद के साथ उनके दोस्तों के आकार प्रकार में भी आमूल चूल परिवर्तन हो गया था। लोगों के साथ की उनकी उठा बैठकी बदली हो गई थी। अब वो बातचीत करते समय बीच बीच में अंग्रेजी के कुछ शब्दों का भी प्रयोग करने लगे थे। क्योंकि की जगह बिकॉज लेकिन की जगह बट क्यों नहीं की जगह व्हाय नॉट उनके पसंदीदा शब्द थे।
बनियान में लगाया हुआ नील बाहर से लौंकता रहे इसलिए गर्मी न होने पर भी वह अपने शर्ट की तीन बटन खोलकर ही रखते थे। एक पुराना कपड़ा उनके बैग के बाहरी जेब में हमेशा पड़ा रहता था जिससे वह जूते में धूल धक्कड़ आदि लग जाने पर किसी कोने में छिपकर उसे साफ कर लिया करते थे।
मनोहर अपने सारे सहकर्मियों का पत्ता काटकर पदोन्नत हुए और बड़े साहब बन गए। साहब बनते ही उन्होंने जो पहला काम किया वह यह कि एक मोटी सी डायरी पकड़कर चलने लगे। वह कहीं भी कुछ घटित होता देखते तो फौरन उसे अपनी डायरी में दर्ज करने लगते। हर घटना का ब्यौरा वह इतने विस्तार से लिखते कि उसमे कोई भी जानकारी छूटती नहीं थी।
मसलन एक बार एक गाय नाले में गिर गई। उसकी रिपोर्ट उन्हे अपने ऊपर वाले अधिकारी को देनी थी। हरकारा बताने के लिए आया तो उन्होंने उसे रोककर अपनी डायरी निकाली और उसका ब्यौरा लिखने लगे।
गाय की उम्र, उसका रंग, उसने अब तक बच्चे दिए या नहीं, बच्चे दिए तो कितने दिए, और अगर बच्चे दिए तो उनमें से स्त्रीलिंग कितनी थीं और कितने पुल्लिंग, उसके सारे बच्चे जिंदा हैं या नहीं, उसके मालिक का नाम क्या है, वह किस गांव का रहने वाला है, वह गाय अपने मालिक के घर में ही रहती थी या छुट्टा थी, अगर छुट्टा थी तो कबसे थी आदि आदि।
सब बातें तो हरकारे को भी पता नहीं थीं इसलिए वह उनके हर प्रश्न के बाद किसी न किसी जानने वाले को फोन लगाता उससे पूछता फिर मनोहर को बता देता। वो मिली हुई सभी जानकारियां अपनी डायरी में उतारते रहते।
बड़ी मुश्किल से उनका डायरी भरने वाला काम पूरा हुआ। फिर वो अपने से ऊपर वाले अधिकारी को रिपोर्ट देने की तैयारी करने लगे। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले वहां के अर्दली को फोन लगाया।
"साहब क्या कर रहे हैं अभी?"
"साहब ने अभी अभी खाना खाया है और जम्हाई ले रहे हैं।"
"अच्छा अच्छा साहब को जम्हाई ले लेने दो मैं थोड़ी देर बाद फोन करता हूं।"
कुछ देर बाद उन्होंने फिर से अर्दली को फोन लगाया।
"साहब क्या कर रहे हैं अभी?"
अर्दली ने खिड़की से अंदर झांकते हुए उत्तर दिया। "कोई काम नहीं था तो साहब कुर्सी पर बैठे बैठे ही ऊंघ रहे हैं।"
"अच्छा अच्छा ठीक है साहब को ऊंघने में व्यवधान पैदा उचित नहीं है मैं थोड़ी देर बाद फिर फोन करता हूं।"
सबेरे दस बजे जब से दफ्तर खुला था वो दफ्तरी को दर्जनों बार फोन करके साहब का हाल चाल ले चुके थे। लेकिन साहब को एक बार भी फोन करने की जहमत उन्होंने नहीं उठाई थी। साहब का हाल चाल लेते लेते दफ्तर बंद होने का समय हो गया। साहब दफ्तर से घर चले गए और इनकी रिपोर्ट धरी की धरी रह गई।
मनोहर आगंतुक का हाल चाल कम पूछते उससे आंकड़े ज्यादा इकट्ठे करते थे। एक दिन किसी ने फोन पर सूचना दी कि फलां गांव में कुछ डाकुओं ने हमला बोल दिया है।
सूचना देने वाला हड़बड़ी में था वह जल्दी जल्दी बताकर अपनी बात पूरी करना चाहता था। लेकिन मनोहर साहब की डायरी खुल चुकी थी। वह बड़े इत्मीनान से उससे सवाल जवाब कर रहे थे।
हां तो तुम्हारे गांव का नाम क्या है? यह तहसील से किस ओर पड़ता है? अच्छा वहां के सबसे नजदीक पुलिस स्टेशन का नाम? जो डाकू आए हैं वो किस गिरोह के हैं और उनकी संख्या कितनी है? डाकुओं के पास बंदूकें हैं या रायफलें, उनके पास अम्यूनेशन कितना होगा। वह रुक रुक कर गोली फायर कर रहे हैं या लगातार, किसी के पास कोई हाथगोला जैसा कुछ? कोई तलवार चाकू छुरी आदि से भी लैस है नहीं।
फोन करने वाले ने थोड़ी देर तक तो इनके सवालों का सामना किया फिर चुपचाप इनकी मां और बहनों के सम्मान में दो चार अनादर सूचक शब्दों का प्रयोग करके फोन काट दिया।
जहां डायरी वहां मनोहर जहां मनोहर वहां डायरी वाली स्थिति पैदा हो गई थी। कहीं किसी मेज पर काली डायरी नजर आते ही लोग इस बात का अनुमान लगा लेते थे कि मनोहर भी कहीं आस पास ही होंगे। उनकी डायरी से डरकर लोग उनके पास जाने से कतराने लगे। वो कब किससे कौन सा सवाल पूछ लें कुछ पता नहीं था। पर उन्हें अपनी डायरी भरना था इसलिए पूछना भी जरूरी होता था।
एक बार उन्होंने एक सफाई कर्मचारी से पूछा - एक बात बता फलां नाली में कुल कितने कीड़े होंगे?"
सफाई कर्मचारी उनकी बात सुनकर अचरज से उन्हे देखने लगा। फिर जाते जाते बोला- "...थे तो इसमें एक लाख इक्यावन पर पिछले दिनों उसमे से एक कम हो गया सुना है उसका प्रोमोशन हो गया..."
क्या करते बेचारे चिहुंक कर रह गए। अयोग्य होकर पदोन्नति पाने का खामियाजा यही है कि जूनियर से जूनियर भी मजाक उड़ाकर चला जाता है साहब जी कुछ नहीं कर पाते हैं।
एक दिन बड़े साहब ने कुछ पूछने के लिए उन्हें अपने पास बुलाया तो उनके कुछ पूछते ही मनोहर अपनी डायरी खोलने लगे उन्हें ऐसा करते देख साहब ने अपना हाथ जोड़ लिया और बोले और कुछ भी करना मनोहर पर अपनी डायरी अंदर रख लो इसे देखते ही मैं डर जाता हूं।
#चित्रगुप्त
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