ग़ज़ल
दिखने में तो सारा सिस्टम बांका छैल छबीला है।
लेकिन आधे पुर्जे गायब बाकी आधा ढीला है।
कत्लेआम मचाने दिल्ली आएगा फिर नादिरशाह
यदि सत्ता का चाबुक पकड़े बैठा शाह रंगीला है।
ये कैसी कद की तुलना है मुझको खाईं में रखकर
उन्हे जहां पर खड़ा किया है उसके नीचे टीला है।
एक रोज था डसा इश्क ने कुछ रिश्तों के जंगल में
उसी रोज से आसमान का तेवर नीला नीला है।
तितली ने होंठों से छूकर कर डाला सबको बीमार
बागों के सब फूलों का रंग तब से पीला पीला है।
कितने आशिक पाल रखे हैं एक अदद दिल की खातिर
दिल तेरा दिल ही है या फिर कोई गांव कबीला है।
अपने चादर के टुकड़ों से बांटा करता हूं रूमाल
अश्कों की बारिश होने पर जिसका बाजू गीला है।
चित्रगुप्त
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