गजल

इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं
सभी बस दुलत्ती उठाए खड़े हैं।

किसी बात में कोई कम क्या किसी से
सभी ज्ञान के बोझ से ही दबे हैं।

उधर सांप का डर सताए तो सुन लो
इधर जाइएगा तो अजगर पड़े हैं।

उन्होंने ही नफरत का विष बीज बोया
वही प्रेम की जो पीएचडी पढ़े हैं।

नदी ने कहा डर न गैरों से नाविक
डुबाएंगे वो ही जो अपने सगे हैं।

हुए मीर जाफर व जयचंद लेकिन
भगत सिंह आजाद भी तो हुए हैं।

नमन अष्ट अंगों से है इस धरा को
मृदा में इसी के पले हैं बढ़े हैं।

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