सरकारी वायदे, आम आदमी और छुट्टे साँड़

सरकारी वायदे, आम आदमी और छुट्टे साँड़
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ताऊ जी बैठकर छुट्टों से अपने खेत की रखवाली कर रहे थे। उनके बगल में ही एक चौदह-पंद्रह साल का लड़का खड़ा बीड़ी पी रहा था। मैंने देखा तो मुझसे रहा न गया। मैंने लड़के को तो टोका ही साथ ही ताऊ जी से भी कहा कि -

''आप तो गाँव के बड़े बुजुर्ग हो आपके सामने ही लड़का बीड़ी पी रहा है और आप हैं कि रोकते नहीं।''

"मना करता ही हूँ भैया लेकिन ये माने तब न?" ताऊ ने उत्तर दिया।

"नहीं मानता है तो इसके घर में बताओ, आखिर इसके माँ बाप तो होंगे?"

"हैं क्यों नहीं भैया इसका बाप है वो दारू पीकर कहीं पड़ा होगा और माँ है वो सास और देवरानी जेठानी से दंगल में मगन होगी।" ताऊ जी ने कहा और छुट्टों के आने की आहट पाकर हट्ट-हट्ट करते हुए चले गए। उनके जाने के बाद मैं बैठकर सोचने लगा। जिस बच्चे के माँ बाप ही ऐसे हों उनके बच्चों को क्या ही दोष दिया जा सकता है। 

ध्यान रहे लोकतंत्र में माई बाप जनता ही है और सरकार इसी माँ बाप का 'चुनाव' है या 'गलती' है जिसको जैसा उचित लगे मान सकते हैं।

गरीब का बच्चा है वो बीड़ी पीता है, जो थोड़ा पैसे वाले का है वो सिगरेट पीता है। जो ज्यादा ही पैसे वाले का है चरस और अफीम उड़ाता है। इन सबसे अलग जो मेरे और ताऊ के जैसे हैं वह बस छुट्टों से अपने खेत की रखवाली करते हुए हट्ट-हट्ट  करने में अपनी सांसे खर्च करते रहते हैं। 

जब नया घर बनवाया था उस समय बिजली का कनेक्शन लगवाना था तो लाइन मैन से संपर्क किया। बाई चांस लाइन मैन का हरिश्चन्द था जिसने मुझे समझाते हुए बताया कि सरकारी कनेक्शन का तीन सौ रुपये महीने पड़ता है आप मुझे सौ रुपये महीने ही देते रहना और मैं लाइन जोड़ दूंगा। सौदा तो फायदे का था लेकिन धरती पर कुछ ईमानदार लोग भी हैं जिनकी बदौलत ही ये दुनिया चल रही है और मैं उसी में से एक हूँ। ऐसी गलतफहमी मुझे बचपन से ही है। मुझे कई बार लगता है कि जिसदिन मैं बेईमान हो गया ये दुनिया घपाक करके बैठ जाएगी। लेकिन दुनिया थम जाय ऐसा मैं कभी भी होने नहीं दूंगा। क्योंकि इसी दुनिया में वो भी हैं जिनको जलाने के लिए ही मैं दिन के आधे काम करता हूँ। वो मुझे देखकर जलते हैं तभी तो मुझे ऊर्जा मिलती है। वे, वे न हुए पूरे कोयला हो गये जिसके बिना देश के बिजली संकट के बारे में तो आपने सुना ही होगा। जिसको सुनाते-सुनाते हमारे खबरी चैनल वाले फेना-फेना हो गये लेकिन संकट कभी आया नहीं। 

अब बात करते हैं उस लाइन मैन की  जिसकी शिकायत करने के लिए मैंने नजदीकी पॉवर हाउस से संपर्क किया। मेरी इस क्रिया का उद्देश्य ईमानदार होना कम 'मैं ईमानदार हूँ' ऐसा दिखाना ज्यादा था। मेरी बातें सुनकर वहाँ के मुख्य अभियंता महोदय ने लाइन मैन को जमकर लानतें भेजीं साथ ही मेरी तारीफ में पुल बांधने की जगह कई फ्लाईओवर बनवाये। उसके बाद मुझसे दो हजार रुपये लेकर तीन दिन में कनेक्शन करवाने का वायदा करके मुझे विदा कर दिया। 

मैं घर आया और मेरे पीछे-पीछे लाइन जोड़ने वाला बंदा भी आ गया। बिजली का कनेक्शन तो हो गया लेकिन न तो कोई बिल मिली और न ही मीटर लगा। कई बार फोन भी किया पर हर बार दो तीन दिन का वायदा करके मेरी छुट्टी कर दी जाती रही। लगभग साल भर बाद मैं फिर से पॉवर हाउस गया। पुराने अभियंता की जगह अब नए आ गए थे। इन्होंने पूरे इत्मीनान से कुर्सी पर पसरकर मेरी बातें सुनीं, पुराने वाकये के लिए खेद भी प्रकट किया साथ ही दो हजार और जमा करने पर तीन दिन में कनेक्शन करवाने का वायदा किया। 

इनका भरोसा  कर लेने के अलावा मेरे पास कोई अन्य चारा भी नहीं था, मैं जिसका घोटाला करके लालू यादव हो जाता। घर आकर दो हजार का बंदोबस्त करना था तो दो कुंतल धान ठेले पर लादकर बाजार की ओर चल दिया। बीच में सरकारी क्रय केंद्र वाले बाबू मुझे देखकर दो तीन बार मुस्कुराए तो मैंने भी उन्हें संबोधित करते हुए मन ही मन देशी गालियों के दस बारह छंद पढ़े औऱ आगे बढ़ गया। ईमानदार आदमी इन छंदों को पढ़ने के अतिरिक्त और कर भी क्या सकता है। 

#चित्रगुप्त 

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